लोकसभा चुनाव 2019 : जब मोदी की पटना रैली से लोग भागने लगे

 03 Mar 2019 ( न्यूज़ ब्यूरो )
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गांधी मैदान के जिन गेटों से आम लोगों का प्रवेश था। उनके सामने तथा किनारे जो झंडे फेंके गए थे उनमें बीजेपी का झंडा मुश्किल से पहचान में आ रहा था।

ये झंडे लोगों से गांधी मैदान में प्रवेश के पहले ही रखवा दिए गए थे। इसलिए गांधी मैदान में जमा भीड़ में किसी का कुछ पता नहीं चल पा रहा था कि कौन किस पार्टी का आदमी है।

अपने तय कार्यक्रम के मुताबिक, दोपहर के 12 बजकर 15 मिनट पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गांधी मैदान में आ चुके थे।

उस वक्त गांधी मैदान में कितनी भीड़ थी, सही बता पाना मुश्किल है क्योंकि एक जगह खड़े होकर भीड़ का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता था।

जब कुछ फोटो जर्नलिस्टों ने गांधी मैदान से सटी ऊँची बिल्डिंगों जैसे बिस्कोमान भवन और पनाश होटल की छत पर जाकर तस्वीरें लेनी चाही तो पुलिस प्रशासन ने उन्हें सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए रोक दिया।

स्थानीय फोटो जर्नलिस्ट आनंद ने बताया, ''हर बार जब गांधी मैदान में रैलियां होती हैं, तो तस्वीरों के ज़रिए भीड़ दिखाने के लिए हमलोग इन्हीं बिल्डिंगों का सहारा लेते हैं। देखिए अब अगर कोई जा पाए तब तो! क्या पता इसलिए भी सबको रोक दिया गया हो!''

जैसे ही नरेंद्र मोदी गांधी मैदान आए, आसमान में घटाएं छानी शुरू हो गई थीं। उनसे पहले सुशील मोदी, रामविलास पासवान और नीतीश कुमार ने अपना संबोधन दिया। इसलिए लोगों को मोदी के भाषण के लिए इंतज़ार भी करना पड़ा।

सबसे आखिर में नरेंद्र मोदी को संबोधन के लिए आमंत्रित किया गया।

मोदी के बोलने के लिए खड़े होते ही भीड़ भी खड़ी हो गई। उन्होंने माइक संभाला और बोलना शुरू किया।

हिंदी, भोजपुरी, मगही और मैथिली में बारी-बारी से अभी लोगों को प्रणाम ही कर रहे थे कि अचानक गांधी मैदान से उठकर लोग भागने लगे।

तेज़ बारिश आ गई थी। उधर मोदी का संबोधन हो रहा था, इधर बारिश तेज़ होती जा रही थी। जो एकदम आगे थे वे तो नहीं निकल सके। मगर पीछे वाले लोग बारिश से बचने के लिए मैदान के बाहर जाने लगे।

संबोधन चलता रहा। कुछ देर तक बारिश हुई। मगर तबतक नज़ारा बदल गया था। आधा संबोधन पूरा होने तक गांधी मैदान की भीड़ तितर-बितर हो चुकी थी।

अपने भाषण में आधे हिस्से के बाद ही मोदी ने विपक्ष पर निशाना साधना शुरु किया। पुलवामा हमले के बदले का ज़िक्र किया, बालाकोट हमले में सबूत मांगने वालों पर सवाल उठाए और खुद को ''चौकन्ना चौकीदार'' कहा।

भाषण के आख़िर में जो लोग गांधी मैदान में बचे थे, वो उसी दरी को बारिश से बचने के लिए ओढ़ रखे थे जो पहले से बिछी थी।

 

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