बिहार के 17 और बाल आश्रय स्थलों की जांच होगी : सुप्रीम कोर्ट

 28 Nov 2018 ( न्यूज़ ब्यूरो )
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मुजफ्फरपुर बाल आश्रय के बाद बिहार के 17 अन्य बाल आश्रय गृहों में बच्चों के यौन शोषण के मामले में बिहार पुलिस की जांच पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरा असंतोष जताया है। भारत के सुप्रीम कोर्ट कहा कि यह जांच भी सीबीआई को दी जाएगी।

जस्टिस मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने मंगलवार को सीबीआई के वकील से कहा कि वह इस बारे में निर्देश लेकर कोर्ट को बताएं। कोर्ट ने कहा कि पुलिस अपेक्षा के अनुरूप काम नहीं कर पा रही है। कोर्ट ने यह भी कहा कि हम सेाच रहे थे कि मामला मुजफ्फरपुर तक ही सीमित है। लेकिन ऐसा नहीं है। इस मामले में कई बच्चे सदमे में हैं और एक लड़की ने आत्महत्या तक कर ली है।

सुप्रीम कोर्ट इस बारे में एक रिपोर्ट को देख रहा था जिसमें आश्रय स्थलों की स्थिति के बारे में बताया गया था। इस मामले में एमिकस क्यूरी शेखर नफड़े ने कहा कि बिहार सरकार इन आश्रय गृहों के बच्चों के यौन शोषण पर बहुत ही नरम है। इस मामले में एफआईआर तार्किक रूप से धारा 323, 324 और 375 के तहत दर्ज होनी चाहिए थी, लेकिन छोटे अपराधों में ही रिपोर्ट दर्ज की गई है।

उन्होंने कहा कि इस मामलों में बच्चों पर गंभीर चोट और उनका यौन शोषण सामने आया है। इसमें अप्राकृतिक यौन संबंध में धारा 377 के तहत भी रिपोर्ट होनी चाहिए, लेकिन मामला जे जे एक्ट, 2015 की धारा 82 के तहत ही दर्ज हुआ है। बिहार में 110 आश्रय स्थल हैं जिनमें से 17 की स्थिति बहुत खराब है।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ और बिहार सरकार के वकील के बीच हुई बातचीत इस प्रकार है :

पीठ : आप क्या कर रहे हो, यह बहुत ही शर्मनाक है, एक बच्चे के साथ अप्राकृतिक यौन शोषण हो रहा है और आप कह रहे हैं कि कुछ नहीं हुआ है। यह अमानवीय है। आप इस मामले में पॉक्सो एक्ट नहीं, आईपीसी की धारा 377 (आप्राकृतिक यौन संबंध) लगाइए। क्या इस मामले में धारा 377 के तहत जांच नहीं होनी चाहिए।

वकील : मामले की जांच हो रही है।

पीठ : यदि किसी की हत्या होती है और आप सामान्य चोट की रिपोर्ट दर्ज करते हैं तो क्या आप हमसे उम्मीद रखते हैं कि हम आपकी यह बात मान लेंगे कि इसकी जांच हो रही है कि आदमी मरा तो नहीं है। यह क्या है।

जस्टिस लोकुर : आप या तो यह कह सकते हैं कि आपसे सही धाराओं में रिपोर्ट दर्ज करने में गलती हुई है या फिर आप हमारे आदेश का इंतजार कर सकते हैं। यदि हम इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि धारा 377 का उल्लंघन हुआ है तो आपको  रिपोर्ट दर्ज करनी पड़ेगी।

वकील : धारा 377 के तहत आरोप लगाए जाएंगे।

कोर्ट : आपने हमें बताया था कि आप गंभीरता के साथ मामले देखेंगे, क्या यही आपकी गंभीरता है। आपकी सरकार को रिपोर्ट मई में दी गई थी और आप बता रहे हैं कि आपने रिपोर्ट आज ही देखी है। यह दुखद है। आप यह कह कर सरकार को नहीं बचा सकते।

कोर्ट मुख्य सचिव से : क्या इसका कोई अर्थ है। एक बच्चे के साथ शोषण हुआ और आप कहते हो कि जे जे बोर्ड ने सही काम नहीं किया, उस पर कार्रवाई की जाएगी। जब आरोप को एफआईआर में रखा ही नहीं गया है तो आप जांच कैसे करेंगे? हमने देखा कि पुलिस की सामान्य प्रवृत्ति होती है कि वह रिपोर्ट में गंभीर किस्म की धाराएं लगाती है, लेकिन यहां एकदम उल्टा है।

वकील : मामले को 24 घंटे के अंदर ठीक करवा देंगे। इसे सोमवार तक स्थगित किया जाए।

कोर्ट : क्या इसका फायदा अभियुक्त नहीं उठाएंगे? वह कहेंगे कि मामला देरी से दर्ज किया गया है। इसे कल ही ठीक कीजिए और मुख्य सचिव कल कोर्ट में रहेंगे। उन्हें पता होना चाहिए कि राज्य में क्या हो रहा है। इस मामले को दो बजे सुना जाएगा।

 

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