हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन नाम की मलेरिया की दवा से कोरोना वायरस के संक्रमण का इलाज होने के दावों को एक बड़ा आघात लगा है जब फ़्रांस में कोविड रोगियों के इलाज के लिए इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई।
फ़्रांस सरकार ने कहा है कि दो सलाहकार संस्थाओं ने ये पाया कि इस दवा के सेहत से जुड़े गंभीर प्रभाव हो सकते है जिसके बाद वहाँ डॉक्टरों के इस दवा को लेने पर रोक लगा दी गई है जो एहतियात के तौर पर इसका सेवन कर रहे थे।
पर कई देशों में इसका इस्तेमाल हो रहा है और कई देशों में इस पर रिसर्च किया जा रहा है।
अमरीका में सरकार ने अस्पतालों में रोगियों को आपातकाल परिस्थितियों में इस दवा के इस्तेमाल की मंज़ूरी दे दी है। लेकिन उसने चेतावनी दी है कि अस्पतालों के बाहर या शोध से अलग इस दवा का प्रयोग नहीं किया जाए क्योंकि इससे दिल को ख़तरा हो सकता है। हालाँकि अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप खुलकर इस दवा को समर्थन देते रहे हैं और उन्होंने कहा कि वे ख़ुद एहतियात के तौर पर इस दवा का सेवन करते रहे हैं।
ब्राज़ील में भी इस दवा पर लगी पाबंदियों में ढील दी गई है और साधारण मामलों से लेकर अस्पतालों में गंभीर रूप से बीमार रोगियों को ये दवा देने की छूट दे दी गई है। ब्राज़ील के राष्ट्रपति जेर बोल्सोनारो इस दवा के इस्तेमाल के पक्षधर रहे हैं।
भारत सरकार ने इसके इस्तेमाल के दायरे को और बढ़ाकर अब इसे एहतियाती दवा के तौर पर स्वास्थ्यकर्मियों को देना तय किया है।
मगर अब किसी भी रिसर्च में ये नहीं कहा गया है कि ये दवा कोरोना संक्रमण का इलाज है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस सप्ताह सुरक्षा कारणों से इस दवा के परीक्षण पर अस्थायी तौर पर रोक लगा दी।
लेकिन और कुछ जगह अध्ययन हो रहे हैं, जैसे स्विस दवा कंपनी नोवार्टिस अमरीका में परीक्षण कर रही है। ऐसे ही ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के समर्थन से थाईलैंड में महिडोल ऑक्सफ़ोर्ड ट्रॉपिकल मेडिसीन रिसर्च यूनिट में भी एक शोध हो रहा है।
अफ़्रीकी देश नाइजीरिया ने कहा है कि वो इस दवा से जुड़ी एक और दवा क्लोरोक्वीन के क्लीनिकल ट्रायल के लिए दबाव डालेगा।
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