अमेरिका के एक प्रमुख थिंक टैंक यूनाइटेड इंस्टीट्यूट आॅफ पीस के एक विशेषज्ञ ने कहा कि अमेरिका-पाकिस्तान रिश्ते गंभीर संकट में हैं और दोनों देशों के बीच अविश्वास गहरा गया है।
इसके एक दिन पहले ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने अपना तीन दिवसीय अमेरिका दौरा खत्म किया है। कांग्रेस से वित्त पोषित अमेरिकी थिंक टैंक यूनाइटेड इंस्टीट्यूट आॅफ पीस में पाकिस्तान पर विशेषज्ञ मोईद यूसुफ ने कहा कि इस्लामाबाद और वाशिंगटन एक-दूसरे की मंशा को बेहद संदेहास्पद नजरिए से देखते हैं।
यूसुफ ने शुक्रवार को पीटीआई को बताया, ''मुझे लगता है कि यह रिश्ता गंभीर संकट में है।''
उनकी यह टिप्पणी पाकिस्तानी विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ के तीन दिवसीय वाशिंगटन दौरा शुक्रवार को खत्म करने के बाद आई है। अपनी यात्रा के दौरान आसिफ ने अमेरिका के विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन और अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एच आर मैक्मास्टर से मुलाकात की।
आसिफ से जब पूछा गया कि वह अपनी यात्रा से क्या लेकर लौट रहे हैं तो उन्होंने कहा, ''यह असाधारण नहीं होगा। विदेश मंत्री से काफी अच्छी मुलाकात रही। मैक्मास्टर से मुलाकात में मैं थोड़ा सतर्क था, लेकिन वह अच्छी थी। यह बुरी नहीं थी। मुझे लगता है कि हमें चर्चा और विचारों के आदान-प्रदान के रूप में संपर्क के इस रूख को बरकरार रखने की जरूरत है।''
अमेरिका-पाकिस्तान रिश्तों के विशेषज्ञ यूसुफ ने कहा कि यहां असली मुद्दा अविश्वास का है। उन्होंने कहा, ''यह अविश्वास इतना गहरा है कि दोनों पक्षों के लिए इससे बाहर निकलकर उस तरीके को तलाशना बेहद मुश्किल होगा जिसमें वे एक-दूसरे पर जरूरी भरोसा कायम रख सकें।
यह विश्वास कर सकें कि वे जो कुछ भी करेंगे, उसके प्रति गंभीर होंगे। दो पक्षों की स्थिति ऐसी है कि वे दूसरे पक्ष की मंशा को लेकर बेहद संदेहास्पद नजरिया रखते हैं।'' यूसुफ ने कहा कि किसी को भी इसमें जल्द किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि अमेरिकी रक्षा मंत्री जिम मैटिस ने कुछ दिनों पहले ही कहा था कि अगर पाकिस्तान अपने तौर-तरीके नहीं बदलता है और आतंकी समूहों को समर्थन देना जारी रखता है तो राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उसके खिलाफ हर जरूरी कदम उठाने को तैयार हैं।
मैटिस ने पाकिस्तान को चेतावनी दी कि अगर वह अपनी धरती पर आतंकियों की सुरक्षित पनाहगाह के खिलाफ कार्रवाई नहीं करता है तो उसे वैश्विक स्तर पर राजनयिक रूप से अलग-थलग किया जा सकता है और उससे गैर-नाटो सहयोगी का दर्जा छीना जा सकता है।
सबसे अहम सवाल कि आतंकवादियों के पास हथियार आता कहाँ से है?
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