दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी है, यह बात कई जानकार कह चुके हैं। इसकी वजह परमाणु संपन्न होते जा रहे देश नहीं हैं। वजह है ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका के बीच तनातनी। चीन वर्षों से ताइवान का एकीकरण कर देश का कायाकल्प करने का ख्वाब देख रहा है तो अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर में अपनी मौजूदगी दर्ज कराकर जता दिया है कि वह चीन का कोई भी जबरन उठाया गया कदम सफल नहीं होने देगा। ब्रिटेन के एक्सप्रेस अखबार की खबर के मुताबिक, दक्षिण चीन सागर में तनाव बढ़ता जा रहा है।
कुछ विशेषज्ञों की सलाह पर चीन ताइवान पर जबरन काबू करना चाहता है। चीन का यह कदम अमेरिका को युद्ध के लिए उकसा सकता है। बीजिंग ताइवान को एक विद्रोही प्रांत मानता है और हमेशा उसे चीन का ही हिस्सा बताता है, जबकि कंट्टरपंथी अधिकारी आइलैंड को चीन का हिस्सा मानने से इनकार करते हैं और यह भी मानते हैं कि चीन का उस पर आधिपत्य जमाना मुश्किल है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि आइलैंड पर कब्जा जमाने के लिए चीन ने एक टाइम टेबल भी बना ली है और चीनी सेना 2020 में ताइवान को अपना बनाने के लिए कदम उठा सकती है। विशेषज्ञों की राय में इलाके में अमेरिकी सुरक्षा और ताइवान को अपना बनाने को लेकर राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कसम शांति से समाधान नहीं निकालने दे रही है और इस बात की बहुत संभावना है कि चीन और अमेरिका की इस तनातनी से वैश्विक स्तर पर मतभेद उभरेंगे, क्योंकि ताइवान ने वॉशिंगटन के साथ यह संधि पहले ही कर रखी है कि अगर देश पर कोई खतरा आता है तो उसे उसकी सुरक्षा के लिए आगे आना होगा।
चरहार इंस्टीट्यूट के थिंक टैंक के एक शोधार्थी डेन युवेन ने कहा कि कुछ कारणों के चलते बीजिंग दुनिया की परवाह नहीं करते हुए शांतिपूर्ण बातचीत की बजाय ताकत से एकीकरण करने की ओर कदम बढ़ाएगा। उन्होंने कहा कि पहला, दोनों के बीच क्रॉस स्ट्रेट संबंध बिगड़े हुए चल रहे हैं। दूसरा, ताइवान की नई पीढ़ी के बीच चीन की पहचान कम हो रही है। तीसरा, ताइवान की राजनीतिक पार्टियों का प्रभाव खत्म हो रहा है। अगर चीन की बड़ी पार्टी कुओमिवताग फिर से जीतती है, तब क्रॉस स्ट्रेट एकीकरण आसान नहीं होगा।
2016 में ट्रंप ने राष्ट्रपति बनते ही ताइवान की राष्ट्रपति साइ इंग-वेन से फोन पर बात की थी। जिसका नतीजा यह हुआ था कि चीन और ताइवान के संबंधों में तल्खी आ गई थी। अमेरिका ने 1979 के बाद ताइवान से बात की थी। बीजिंग ने वन चाइना पॉलिसी के तहत अमेरिका को मनाने में सफल रहा था कि वह ताइवान से बात नहीं करेंगा। वन चाइन पॉलिसी के तहत ताइवान में उसकी सरकार होगी, लेकिन वह चीन का ही हिस्सा रहेगा।
डेंग ने आगाह किया कि दक्षिण चीन सागर में घुस कर अमेरिका चीन को उकसाकर सैन्य कार्रवाई के मंसूबे में सफल हो सकता है। उन्होंने कहा कि सेना के बल पर बीजिंग के साथ ताइवान का एकीकरण करने के लिए सारी तैयारियां हो चुकी हैं, बहाना भर चाहिए। अमेरिका की मदद के चलते ताइवान की राष्ट्रपति साइ उत्साहित है और ट्रंप के साथ अपने संबंधों की दुहाई देकर वह चीन को आंक सकती हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि 2020 में चीन ताइवान की ओर रुख करेगा या नहीं, यह उसके नेताओं के फैसले पर ही निर्भर करेगा। शी जिनपिंग को अपने राष्ट्रपति रहते हुए ताइवान का एकीकरण कराने की उपलब्धि का लालच हो सकता है। अगर युद्ध होता है तो शांति की सारी मुहिम और बनाया हुआ तंत्र, सब का सब धरा रह जाएगा।
ऐसी स्थिति में शी जिनपिंग समय से ज्यादा 2022 तक राष्ट्रपति रह सकेंगे और उन्हें चीनी सपनों के कायाकल्प के लिए ज्यादा समय मिल सकेगा। अगर 2020 में बीजिंग ताइवान के खिलाफ हथियार उठाता है तो पूर्वी एशिया में बुरे परिणाम सामने आएंगे। अगर उत्तर कोरिया की परमाणु क्षमताओं को भी उखाड़ न फेंका गया तो वह भी दक्षिण कोरिया के साथ युद्ध करने का जोखिम ले सकता है।
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