उत्तर प्रदेश के बागपत जिला जेल में माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी की हत्या के तुरंत बाद भले ही कुख्यात सुनील राठी ने उसके मर्डर का जुर्म कबूल कर लिया हो, मगर इस सनसनीखेज वारदात के पीछे की वजह को हर कोई जानना चाहता है। हत्यारोपी सुनील राठी के आत्मरक्षा वाले बयान से खुद अफसर ही इत्तेफाक नहीं रखते तो आम जनता भला इस पर कैसे यकीन कर सकती है?
सवाल उठता है कि यह हत्याकांड किसी गहरी साजिश का नतीजा है या फिर करोड़ों की सुपारी डील का अंजाम। अगर ये दोनों वजह नहीं है तो फिर ये पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पूर्वांचल के माफिया में किसी नए गठजोड़ के आगाज का खुला ऐलान है। सवाल जितने बड़े हैं, जवाब भी उतना ही उलझा हुआ है।
मुन्ना बजरंगी के परिजन लंबे समय से अपने सफेदपोश विरोधियों पर हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाते आ रहे हैं। बजरंगी की हत्या के बाद परिजनों द्वारा खेकड़ा थाने में दी गई तहरीर में भी उन्हीं विरोधियों के नाम शामिल हैं।
वे इसे राजनीतिक हत्या बता रहे हैं तो अगला सवाल खड़ा हो जाता है कि इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में आतंक का दूसरा नाम बन चुका सुनील राठी कैसे मोहरा बन गया? अपराध की दुनिया को करीब से जानने वाले लोगों का जवाब है कि यह एक बहुत बड़ी सुपारी डील हो सकती है। इतना ही नहीं, इस हत्या को लेकर दस करोड़ रुपये तक के सौदे की चर्चाओं का बाजार भी गर्म है।
सुपारी किलिंग के अलावा जो एक और कयास लगाया जा रहा है, वह है वेस्ट यूपी और पूर्वांचल के माफिया के नये गठजोड़ का आगाज। यह कैसे फिट बैठता है? इसके पीछे की दलील भी कमजोर नहीं है।
सुत्रों का कहना है कि सुनील राठी का रिश्तेदार राजीव राठी पूर्वाचल की मिर्जापुर जेल में बंद है उसकी कुछ दिन पहले मुन्ना बजरंगी के गुर्गों द्वारा पिटाई कर दी जाती है, जिसका पक्ष पूर्व सांसद ब्रिजेश सिंह के गुर्गे लेते हैं। इसी रिश्तेदार के जरिये ही सुनील राठी की टेलिफोनिक बातचीत इस नये गैंग से शुरू हो जाती है और फिर दो बड़े माफिया की जुगलबंदी से तीसरे बड़े माफिया डॉन का खात्मा हो जाता है।
पुलिस और न्यायिक जांच भी इन्हीं तीन बिंदुओं को केन्द्र में रखकर चल रही है तथा इसके लिये हर उस कड़ी को जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है, जो हत्याकांड के सटीक खुलासे तक उनको पहुंचा दे।
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