नया क़ानून बना तो सात लाख भारतीयों को छोड़ना पड़ सकता है कुवैत

 06 Jul 2020 ( परवेज़ अनवर, एमडी & सीईओ, आईबीटीएन ग्रुप )
POSTER

प्रवासियों को लेकर कुवैत में तैयार हो रहे क़ानून ने खाड़ी देश में रह रहे भारतीयों के मन में उन चिंताओं को फिर से जगा दिया है जब दो साल पहले नियमों में बदलाव के चलते सैकड़ों भारतीय इंजीनियरों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा था।

अंग्रेज़ी अख़बार 'अरब न्यूज़' के मुताबिक़ कुवैत की नेशनल एसेंबली की क़ानूनी समिति ने प्रवासियों पर तैयार हो रहे एक बिल के प्रावधान को विधि सम्मत माना है।

ख़बरों के मुताबिक़ मंज़ूरी के लिए इस प्रस्ताव को दूसरी समितियों के पास भेजा जाने वाला है। इस क़ानून के मसौदे में कहा गया है कि कुवैत में रहने वाले भारतीयों की तादाद को देश की कुल आबादी के 15 फ़ीसद तक सीमित किया जाना चाहिए।

समझा जाता है कि वहां रहने वाले तक़रीबन 10 लाख प्रवासी भारतीयों में से सात लाख लोगों को बिल के पास होने की सूरत में वापस लौटना पड़ सकता है।

सऊदी अरब के उत्तर और इराक़ के दक्षिण में बसे इस छोटे से मुल्क की तक़रीबन पैंतालीस लाख की कुल आबादी में मूल कुवैतियों की जनसंख्या महज़ तेरह-साढ़े तेरह लाख ही है।

यहां मौजूद मिस्र, फिलिपीन्स, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और दूसरे मुल्कों के प्रवासियों में सबसे अधिक भारतीय हैं।

ख़बरों के मुताबिक़, प्रस्तावित क़ानून में दूसरे मुल्कों से आकर कुवैत में रहने वाले लोगों की तादाद को भी कम करने की बात कही गई है। कहा गया है कि प्रवासियों की तादाद को वर्तमान स्तर से कम करके कुल आबादी के 30 फ़ीसद तक ले जाया जाएगा।

कुवैत की एक मंटीनेशनल कंपनी में काम करने वाले नासिर मोहम्मद (बदला हुआ नाम) को इंजीनयरिंग की डिग्री होते हुए भी मजबूरी में सुपरवाइज़र के तौर पर काम करना पड़ रहा है।

वो कहते हैं, ''यहां रहने वाले हिंदुस्तानी सोच रहे हैं कि अगर बिल क़ानून बन गया तो क्या होगा?''

नासिर मोहम्मद फिर भी ख़ुद को ख़ुशक़िस्मत मानते हैं कि उन्हें पुरानी कंपनी की जगह नई कंपनी में काम मिल गया वर्ना 2018 में आए नए कुवैती नियमों के दायरे से बाहर हो जाने की वजह से आईआईटी और बिट्स पिलानी से पास हुए इंजीनियरों तक की नौकरी बस देखते-देखते चली गई थी।

भारत की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इंजीनियरों के मामले को कैवत की सरकार के साथ उठाया भी था लेकिन उसका कोई हल नहीं निकल सका।

नासिर मोहम्मद कहते हैं, "हालात ये हैं कि इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर चुके बहुत सारे भारतीय कुवैत में सुपरवाइज़र, फ़ोरमैन वग़ैरह की तनख्वाह और ओहदों पर काम कर रहे हैं जबकि ड्यूटी उन्हें एक इंजीनियर की निभानी पड़ती है।''

कुवैत में रह रहे हैदराबाद निवासी मोहम्मद इलियास कहते हैं कि नए प्रवासी क़ानून जैसे नियम की सुगबुगाहट 2008 की आर्थिक मंदी के बाद से बार-बार होती रही है और ये 2016 में तब और तेज़ हुई थी जब सऊदी अरब ने निताक़त क़ानून को लागू किया था।

निताक़त क़ानून के मुताबिक़ सऊदी अरब के सरकारी विभागों और कंपनियों में स्थानीय लोगों की नौकरी दर को ऊपर ले जाना है।

पिछले साल एक कुवैती सांसद ख़ालिद अल-सालेह ने एक बयान जारी कर सरकार से मांग की थी कि "प्रवासियों के तूफ़ान को रोका जाना चाहिए जिन्होंने नौकरियों और हुकूमत के ज़रिये मिलने वाली सेवाओं पर क़ब्ज़ा जमा लिया है।''

सफ़ा अल-हाशेम नाम की एक दूसरी सांसद ने चंद साल पहले कहा था कि "प्रवासियों को साल भर तक ड्राइविंग लाइसेंस न देने और एक कार ही रखने की इजाज़त दिए जाने के लिए क़ानून लाया जाना चाहिए।''

सफ़ा अल-हाशेम के इस बयान की कुछ हलकों में निंदा भी हुई थी।

कुवैत की नेशनल एसेंबली में 50 सांसद चुनकर आते हैं हालांकि माना जाता है कि वहां अमीर ही फ़ैसला लेने वाली भूमिका में हैं।

हाल में भी जब नए क़ानून की बात चली है तो कुछ स्थानीय लोग इसके ख़िलाफ़ भी बयान देते दिखाई दिए हैं।

19वीं सदी के अंत से 1961 तक ब्रिटेन के 'संरक्षण' में रहे कुवैत में भारतीयों का जाना लंबे समय से शुरु हो गया था। इस समय व्यापार से लेकर तक़रीबन सारे क्षेत्रों में वहां भारतीय मौजूद हैं, कुवैती घरों में ड्राइवर, बावर्ची से लेकर आया (महिला नौकरानी) तक का काम करने वालों की संख्या साढ़े तीन लाख तक बताई जाती है। लोगों का मानना है कि जल्दी-जल्दी में दूसरे लोगों से उनकी जगह भर पाना इतना आसान न होगा।

रीवन डिसूज़ा का परिवार 1950 के दशक में ही भारत से कुवैत चला गया था और उनकी पैदाईश भी वहीं की है।

रीवन डिसूज़ा स्थानीय अंग्रेज़ी अख़बार टाईम्स कुवैत के संपादक हैं।

बीबीसी से बातचीत के दौरान वो कहते हैं, "प्रवासियों पर बिल को अभी महज़ क़ानूनी समिति द्वारा संविधान के अनुकूल माना गया है, अभी इसे कई और कमिटियों जैसे मानव संसाधन समिति और दूसरे चरणों से गुज़रना है। इसके बाद ही ये बिल के तौर पर पेश हो सकेगा। इसके क़ानून बनने की बात उसके बाद ही मुमकिन है।''

रीवन डिसूज़ा इसे एक दूसरे नज़रिए से भी देखते हैं।

वो कहते हैं कि कोविड-19 से उपजे संकट और उसके बीच भारत सरकार के ज़रिये वहां रह रहे ग़ैर-क़ानूनी लोगों को वापस ले जाने की स्थानीय सरकार की मांग की अनदेखी करने को लेकर कुवैती हुकूमत के कुछ हलक़ों में नाराज़गी है और वो अब किसी एक देश के काम करने वालों पर आश्रित नहीं रहना चाहते हैं।

 

(आईबीटीएन के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां क्लिक करें. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)

इस खबर को शेयर करें

शेयरिंग के बारे में

विज्ञापन

https://www.ibtnkhabar.com/

 

https://www.ibtnkhabar.com/

अल जज़ीरा टीवी लाइव | अल जज़ीरा इंग्लिश टीवी देखें: लाइव समाचार और समसामयिक मामले


https://www.ibtnkhabar.com/

https://www.ibtnkhabar.com/

https://www.ibtnkhabar.com/

https://www.ibtnkhabar.com/

https://www.ibtnkhabar.com/

Copyright © 2025 IBTN Al News All rights reserved. Powered by IBTN Media Network & IBTN Technology. The IBTN is not responsible for the content of external sites. Read about our approach to external linking