60,145 करोड़ रुपये की राफेल डील ने साबित कर दिया कि 'कल्चर ऑफ क्रोनी कैपिटलिज़्म' यानि 3C's मोदी सरकार का डीएनए बन गया है।
1. राफेल जहाज बनाने वाली कंपनी, डसॉल्ट एविएशन ने 13 मार्च, 2014 को एक 'वर्कशेयर समझौते' के रूप में सरकारी कंपनी, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) से 36,000 करोड़ रुपये के ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किए। परंतु भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'क्रोनी कैपिटलिज़्म प्रेम' तब जगजाहिर हो गया, जब 10 अप्रैल, 2015 को 36 राफेल लड़ाकू जहाजों के खरीद की मोदी द्वारा की गई एकतरफा घोषणा के फौरन बाद, सरकारी कंपनी एचएएल से इस सबसे बड़े 'डिफेंस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट' को छीन लिया गया।
2. 'डिफेंस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट' एक निजी कंपनी, रिलायंस डिफेंस लिमिटेड को दे दिया गया, जिसे लड़ाकू जहाजों के निर्माण का शून्य भी अनुभव नहीं है। रिलायंस डिफेंस लिमिटेड का गठन फ्रांस में 10 अप्रैल, 2015 को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 36 राफेल लड़ाकू जहाजों की खरीद की घोषणा किए जाने से 12 दिन पहले यानि 28 मार्च, 2015 को किया गया। रिलायंस डिफेंस लिमिटेड के पास लड़ाकू जहाज बनाने का लाईसेंस तक नहीं था।
3. आश्चर्य वाली बात यह है कि रिलायंस एयरोस्ट्रक्चर लिमिटेड को रक्षा मंत्रालय द्वारा लड़ाकू जहाजों के निर्माण का लाईसेंस तो दिया गया, लेकिन 2015 में लाईसेंस का आवेदन देने व उसके बाद लाईसेंस दिए जाने की तिथि, 22 फरवरी, 2016 को इस कंपनी के पास लड़ाकू जहाज बनाने की फैक्ट्री लगाने के लिए न तो कोई जमीन थी और न ही कोई बिल्डिंग।
4. चौंकाने वाले खुलासों एवं प्रमाणों से 30,000 करोड़ रुपये का 'डिफेंस ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट' रिलायंस समूह को दिए जाने के बारे में भारत की रक्षामंत्री निर्मला सीतारमन की झूठ जगजाहिर हो जाती है।
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