रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने घोषणा की है कि सीरियाई सरकार और विद्रोही गुटों के बीच संघर्ष विराम पर सहमति बनी है और दोनों पक्ष शांति वार्ता के लिए राज़ी हो गए हैं।
ये संघर्ष विराम स्थानीय समयानुसार गुरुवार मध्यरात्रि से लागू हो जाएगा। रूस और तुर्की दोनों देश सीरिया में अलग-अलग पक्षों का समर्थन कर रहे हैं।
जहां तुर्की विद्रोही गुटों का समर्थन कर रहा है तो वहीं रूस राष्ट्रपति बशर अल असद के नेतृत्व वाली सीरियाई सरकार का समर्थन कर रहा है। सीरिया में पांच सालों से ज़्यादा समय से यह संघर्ष चला आ रहा है।
सीरिया में रूस की रणनीति क्या है? बीबीसी संवाददाता जोनाथन मार्कस के अनुसार, रूस का सीरिया के साथ सोवियत संघ के जमाने से रणनीतिक रिश्ता रहा है। लंबे समय से सीरिया के तट पर रूस का एक छोटा सा नौसैनिक अड्डा रहा है और सीरिया की फ़ौज के साथ रूस का मजबूत संबंध रहा है। रूस सीरिया की फ़ौज को हथियार मुहैया कराने वाला मुख्य आपूर्तिकर्ता देश है। सीरिया रूस के लिए मध्य पूर्व के इलाके में अपना प्रभाव जमाए रखने का आख़िरी जरिया है।
मार्कस कहते हैं, "इस रिश्ते ने व्लादिमीर पुतिन को सीरिया में कार्रवाई करने के लिए उकसाया."
पर बड़ा सवाल ये है कि सीरिया में आख़िर दखल देने का रूस का मकसद क्या है? लंबे समय से रूसी फ़ौज पर नज़र रखने वाले और जेम्सटाउन फाउंडेशन में यूरेशियाई मामलों के सीनियर फेलो रोजर मैक डरमोट का कहना है, "आम तौर पर सीरिया में रूस के दखल ने पर्यवेक्षकों को प्रभावित किया है। इसने रूस से इतनी दूर सीरिया में ऐसे मुश्किल ऑपरेशन को अंज़ाम देने की रूस की क्षमता को साबित किया है."
विल्सन सेंटर के केनान इंस्टिट्यूट के माइकल कॉफमैन का एक अलग ही बात बताते हैं। उनका कहना है, "रूस ने अपना नुक़सान कम करने के मक़सद से ज़मीनी कार्रवाई के लिए दूसरी ताकतों पर भरोसा किया, जबकि रूस के ऑफिसर्स या तो संयुक्त कार्रवाई में शामिल हुए या फिर हवाई हमले ही किए."
वहीं मैक डरमोट का कहना है, "रूसी फ़ौज इसे अपनी नई और आधुनिक तकनीक को परखने के एक अवसर के तौर पर देखता है."
रूसी फ़ौज ने अपने कुछ अत्याधुनिक विमान सीरिया में तैनात किए हैं, लेकिन यही बात दूसरे जंगी समानों के लिए नहीं कही जा सकती है।
रूस की सीरिया में दखल से रूस को कूटनीतिक लाभ भी मिलने वाला है। इसने इसराइल, ईरान और तुर्की के साथ संबंधों को नया आयाम दिया है। इसराइल और रूस के बीच एक समझ भी विकसित हुई है।
मैक डरमोट विश्लेषण करते हुए आगे कहते हैं, "सीरिया एक तरह से रूसी फ़ौज की क्षमताओं की 'नुमाइश' करने की जगह बन कर रह गई है। अमरीका न केवल कूटनीतिक रूप से समान स्तर पर रूस से समझौता करने पर मजबूर हुआ बल्कि सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद को लेकर भी उसे रुख बदलना पड़ा। अमरीका लंबे समय तक अड़ा था कि असद को राष्ट्रपति पद छोड़ना होगा। अमरीका ने शर्त रखी थी कि किसी भी बातचीत से पहले असद को सत्ता छोड़नी होगी। सीरिया में रूसी हस्तक्षेप के कारण अमरीका से शत्रुता बढ़ी है।''
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