योगी आदित्यनाथ को जब से उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री घोषित किया गया है तब से ये बहस चालू है कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद हैं या नहीं? यूपी की कुल 403 सीटों में से जिस तरह भाजपा गठबंधन ने कुल 325 सीटें जीतें उसके बाद से यूपी के अगले सीएम को लेकर अकटलों का बाजार गर्म था। 11 मार्च को जब नतीजे आए तो भाजपा ने संकेत दिया कि वो 16 मार्च को संसदीय दल की बैठक के बाद यूपी के अगले सीएम के नाम की घोषणा करेगी।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 18 मार्च को विधायक दल की बैठक के बाद पार्टी ने घोषणा की कि राज्य का अगले सीएम गोरखपुर से भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ होंगे। 11 मार्च से 18 मार्च तक योगी का नाम घोषित होने से पहले मीडिया में मनोज सिन्हा, केशव प्रसाद मौर्य, दिनेश शर्मा, राम लाल, स्वतंत्र सिंह देव, राजनाथ सिंह इत्यादि के नाम सीएम के तौर पर उछाले गए।
मनोज सिन्हा को तो मीडिया ने लगभग सीएम बना ही दिया था, लेकिन ये हो न सका।
आदित्यनाथ के राज्य के सीएम के तौर पर पेश किए जाने के बाद भी मीडिया में भ्रम की स्थिति रही। कुछ रिपोर्ट में दावा किया गया है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पसंद कोई और था। भाजपा के चुनाव पूर्व आंतरिक सर्वे मे योगी राजनाथ सिंह के बाद सीएम के दूसरे सबसे ज्यादा लोकप्रिय उम्मीदवार बनकर उभरे थे। राजनाथ यूपी का सीएम बनना नहीं चाहते थे। इसलिए मोदी और पार्टी अध्यक्ष शाह ने योगी को चुना। लेकिन वरिष्ठ पत्रकार और ''नमो स्टोरी: अ पोलिटिकल लाइफ'' किताब के लेखक किंशुक नाग की मानें तो आदित्यनाथ मोदी और शाह की नहीं, आरएसएस की वजह से यूपी के सीएम बने हैं।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पीएम मोदी ने मनोज सिन्हा का नाम फाइनल कर लिया था, लेकिन अंतिम समय में आरएसएस के वीटो के बाद उन्हें अपना निर्णय बदलने को मजबूर होना पड़ा।
नाग मोदी और योगी के बीच एक समानता की तरफ भी याद दिलाते हैं। 2002 दंगे के बाद तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी चाहते थे कि नरेंद्र मोदी को सीएम पद से हटा दिया जाए। माना जाता है कि वाजपेयी ने अरुण जेटली को मोदी का इस्तीफा दिलवाने के लिए गुजारत भेज भी दिया था। लेकिन तमाम उतार-चढ़ावों के बाद मोदी सीएम बने रहे और उस समय पीएम वाजपेयी अपने मन की न कर सके। नाग की मानें तो योगी के मसले में भी कुछ-कुछ ऐसा ही हुआ है।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो आरएसएस नरेंद्र मोदी के बढ़ते कद की वजह से चिंता में था। पीएम मोदी को अभी भी आरएसएस का पूरा समर्थन हासिल है, लेकिन आदित्यनाथ का चयन करवाकर संघ ने ये संदेश दिया है कि कोई भी व्यक्ति संगठन से ऊपर नहीं है, चाहे वो पीएम मोदी ही क्यों न हों? ये कोई छिपी बात नहीं है कि आरएसएस नेता के ऊपर संगठन को तरजीह देता है। और शायद यही वजह है कि संघ या भाजपा से अलग होने वाला कोई भी नेता अपनी जमीन नहीं बना सका। चाहे वो बलराज मधोक हैं या कल्याण सिंह या उमा भारती।
आदित्यनाथ के चयन के पीछे एक और तर्क ये दिया जा रहा है कि संघ अभी से नरेंद्र मोदी का उत्तराधिकारी तैयार करने में लग गया है। योगी का चयन उस दिशा में एक बड़ा कदम है। ये साफ है कि साल 2019 का लोक सभा चुनाव भाजपा पीएम मोदी के नेतृत्व में ही लड़ेगी, लेकिन 2024 के लोक सभा में मोदी 75 साल की उम्र पार कर चुके होंगे। खुद पीएम मोदी ने 75 के नेताओं को सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने का अघोषित नियम बना रखा है।
कुछ लोग ये तर्क भी दे रहे हैं कि चूंकि आरएसएस 2025 में अपनी स्थापना के 100 पूरा कर लेगा इसलिए वो चाहता है कि तब तक भारत ''हिंदू राष्ट्र'' बन जाए और इसके लिए उसे योगी जैसे नेता की जरूरत होगी। योगी के चयन के पीछे अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के भाजपा के पुरानी मांग को पूरा करने को भी एक उद्देश्य बताया जा रहा है। वजह चाहे जो हो इतना तो तय है कि योगी बनाम मोदी की ये बहस यहीं नहीं थमने वाली।
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