नई शिक्षा नीति के तहत भारत ने अब विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए अपने दरवाज़े खोल दिए हैं। दुनिया के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय अब भारत में अपने कैम्पस खोल सकेंगे।
हालांकि विशेषज्ञों के मुताबिक़ ये नहीं कहा जा सकता कि ये बदलाव ज़मीन पर जल्द उतर पाएगा या नहीं, लेकिन कइयों को ये ज़रूर लगता है कि भारत में शीर्ष 200 विदेशी विश्ववविद्यालय खुलने से यहां की उच्च शिक्षा का स्तर भी बढ़ जाएगा। कई लोगों का ये भी मानना है कि इससे प्रतिभा पलायन रोकने में भी मदद मिलेगी।
विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में लाने पर बीजेपी के मोदी सरकार का मौजूदा रुख बीजेपी के पुराने उस स्टैंड से बिल्कुल उलट है, जो वो यूपीए-2 सरकार द्वारा विदेशी शिक्षण संस्थानों पर लाए गए रेगुलेशन ऑफ एंट्री एंड ऑपरेशन बिल 2010 पर रखती थी।
भारत के वामपंथी नेताओं समेत पीएम मोदी की सत्ताधारी पार्टी भी पूर्ववर्ती सरकारों के विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अनुमति देने के प्रयासों का विरोध करती रही है।
लेकिन कई सरकारी अधिकारी ये कदम उठाने पर ज़ोर देते रहे, क्योंकि हर साल साढ़े सात लाख से ज़्यादा भारतीय छात्र अरबों डॉलर खर्च करके विदेशों में पढ़ते हैं।
बुधवार को उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे ने पत्रकारों को बताया कि सरकार विश्व के सर्वोच्च रैंक वाले विश्वविद्यालयों को भारत में अपने कैंपस खोलने का अवसर देगी।
हालांकि इस फ़ैसले के आलोचकों का ये भी कहना है कि सर्वोच्च श्रेणी के विश्वविद्यालय भारत में अपने परिसर क्यों खोलना चाहेंगे? जब भारत सरकार ने अपनी नई शिक्षा नीति के तहत फीस की अधिकतम सीमा निर्धारित कर दी है। यानी अब विश्वविद्यालय मुँहमांगी रकम नहीं बटोर सकेंगे। साथ ही नई शिक्षा नीति के तहत उच्च शिक्षा संस्थानों को फ़ीस चार्ज करने के मामले में और पारदर्शिता लानी होगी।
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