भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार सरोवर बांध देश को समर्पित कर दिया, लेकिन अभी तक यह योजना पूरी ही नहीं हुई है।
नहर का इंफ्रास्ट्रकचर मुश्किल से 30 प्रतिशत कमांड एरिया के लिए ही बना है और रिजॉरवायर (जलाशय) भी नहीं भरा है।
इस परियोजना में अभी तक जितनी लागत लग चुकी है, उतनी ही अभी और लगने की संभावना है।
समस्या यह है कि इस परियोजना की कुल लागत का हमें पता ही नहीं है। मोटे तौर पर हम कह सकते हैं कि इस परियोजना से नुकसान ही ज़्यादा हुआ है जबकि लाभ बहुत कम है।
यह योजना कच्छ, सौराष्ट्र और उत्तरी गुजरात के लिए बनी थी। ये गुजरात के सूखाग्रस्त इलाक़े हैं। यहां पानी देने के लिए एकमात्र विकल्प के रूप में यह योजना बनी थी, लेकिन आज तक इन इलाक़ों में पानी नहीं पहुंचा है।
ज्यादातर पानी मध्य गुजरात जैसे अहमदाबाद, बड़ौदा, खेड़ा, बरूच जैसे जिलो में जा रहा है। अहमदाबाद में जो साबरमती नदी बह रही है, उसमें भी नर्मदा का ही पानी है।
इसलिए अभी तक इस योजना का फायदा नज़र नहीं आ रहा क्योंकि जिन इलाक़ों को पानी की ज़रूरत थी। वहां तो पानी नहीं पहुंचा और जहां पहुंचा है वहां पहले से ही पर्याप्त मात्रा में पानी था।
इस योजना की वजह से कम से कम 50 हज़ार परिवार विस्थापित हुए हैं। नर्मदा नदी ख़त्म हो गई है। प्रधानमंत्री मोदी ने आज जो उत्सव मनाया, वह एक तरह से नर्मदा नदी की मौत का उत्सव था।
क्योंकि बांध के नीचे जो 150 किमी तक नदी थी, वह बहना बंद हो गई है। वहीं बांध के ऊपर जो 200 किमी से लंबा रिजॉरवायर एरिया बना है वहां भी नदी नहीं बह रही है।
नदी के निचले इलाक़ों में जो 10 हजार परिवार रह रहे थे, वे मछली पालन पर निर्भर थे। उनकी आजीविका पूरी तरह खत्म हो गई है।
सवाल उठता है कि इस योजना को किस उद्देश्य के साथ शुरू किया गया? वास्तव में इससे कितना फ़ायदा होगा? इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए क्या यह योजना सबसे बेहतर विकल्प थी?
जब हम इन तीन सवालों के जवाब खोजते हैं तो पाते हैं कि यह योजना गुजरात, वहां के सूखा पीड़ित इलाक़ों और भारत के लिए सबसे बेहतर विकल्प नहीं थी।
कुछ दिन पहले मोदी के साथ बुलेट ट्रेन की शुरुआत करने वाला जापान ने ही सबसे पहले इस योजना से अपने हाथ खींचे थे। उन्हें जब पता चला कि इस योजना के कारण कई हज़ार लोगों का विस्थापन हो रहा है तो वह पीछे हट गए।
साल 1992 में विश्व बैंक ने अपनी स्वतंत्र जांच बैठाई थी और उसमें पाया था कि इस परियोजना से बहुत ज़्यादा नुकसान होगा, इसलिए विश्व बैंक ने भी इस योजना पर पैसे लगाने से इंकार कर दिया था।
साल 1993-94 में जब भारत सरकार ने अपनी एक स्वतंत्र जांच बैठाई थी, उसमें भी इस योजना को असफल बताया गया था।
भारत में सरकार तो सिर्फ अपने नेता की बात के आगे ठप्पा लगाने का काम करती है। देश का दुर्भाग्य है कि यहां के नौकरशाह स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सकते।
सरदार सरोवर बांध के पांच बड़े नुकसान:
- कच्छ, सौराष्ट्र, उत्तर गुजरात को फ़ायदा नहीं होगा
- नर्मदा नदी ख़त्म हो गई
- कम से कम 50 हज़ार परिवार विस्थापित हुए, 10 हजार मछुवारे परिवार की आजीविका समाप्त हो गई
- इस योजना में 50 हज़ार करोड़ खर्च हो चुके हैं और इतना ही औऱ खर्च आएगा
- यह योजना प्रशासन की असफलता है, जिन लोगों का पुनर्वास नहीं हुआ है, उनका न्यायपालिका से भरोसा कम हो गया है।
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