नरेंद्र मोदी रोहिंग्या संकट पर हिंदू कार्ड खेल रहे हैं!

 10 Sep 2017 ( परवेज़ अनवर, एमडी & सीईओ, आईबीटीएन ग्रुप )
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म्यांमार से आए रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थियों को अवैध और देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा बताते हुए भारत सरकार ने हाल ही में उन्हें भारत से निकालने का फ़ैसला किया है। ये फ़ैसला ऐसे समय में लिया गया है जब म्यांमार से हज़ारों रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार के सुरक्षाबलों की कार्रवाई से अपनी जान बचाकर बांग्लादेश सीमा की ओर भाग रहे हैं।

भारत ने उन रोहिंग्या शरणार्थियों को भारत से बाहर निकालने का फ़ैसला किया है जो कई सालों से यहां शरण लिए हुए हैं।

भारत सरकार ने रोहिंग्या विद्रोहियों के ख़िलाफ़ म्यांमार सुरक्षाबलों की कार्रवाई का भी समर्थन किया है।

भारत में ज़्यादातर रोहिंग्या शरणार्थी पांच साल पहले म्यांमार में सुरक्षाबलों और बौद्ध अतिवादियों के अत्याचारों से जान बचाकर भारत आए थे।

शरणार्थियों से संबंधित संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 14 हजार से अधिक रोहिंग्या शरणार्थी हैं।

ताज़ा घटनाक्रम के कारण हज़ारों रोहिंग्या मुसलमान एक बार फिर म्यांमार छोड़कर बांग्लादेश की ओर भाग रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र, अमरीका, ब्रिटेन और यूरोपियन यूनियन ने रोहिंग्या संकट को बेहद चिंताजनक क़रार दिया है।

म्यांमार में आंग सान सू ची की नज़रबंदी और लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के दौरान वहां के हज़ारों नागरिकों और राजनीतिक नेताओं ने भारत में शरण ली थी।

अपने आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा के नेतृत्व में हजारों तिब्बती हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और उत्तरांचल में सालों से रह रहे हैं।

पाकिस्तान और बांग्लादेश के हजारों हिन्दू शरणार्थियों ने भारत में शरण ले रखी है।

नेपाली नागरिकों के लिए भारत खुला है। लाखों नेपाली नागरिक भारत में रहते हैं और यहाँ काम करते हैं।

श्रीलंका में गृहयुद्ध के दौरान लाखों तमिलों ने भारत में शरण ली थी।

ऐसे में सवाल उठता है कि सवा अरब की आबादी वाले भारत में मोदी सरकार को कुछ हज़ार रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों से ही दिक्कत क्यों है?

कुछ पर्यवेक्षकों का मानना ​​है कि मोदी सरकार रोहिंग्या शरणार्थियों का विरोध कर 'हिंदू कार्ड' खेल रही है।

टीवी चैनलों पर रोहिंग्या शरणार्थियों को भारत की सुरक्षा के लिए ख़तरा क़रार दिया जा रहा है।

बहस में बताया जाता है कि इन शरणार्थियों के अलकायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे चरमपंथी संगठनों से रिश्ते हैं और वे भारत में आतंकवाद का नेटवर्क फैला रहे हैं।

उनकी संख्या बढ़ा-चढ़ाकर बताई जाती है। कुछ चैनल तो अपनी नफ़रतों में इतना खुलकर सामने आए कि उन्होंने 'विदेशी मुसलमानों भारत छोड़ो' का नारा दे डाला है।

रोहिंग्या शरणार्थियों के बारे में मौजूदा मोदी सरकार की नीति कोई हैरत की बात नहीं है।

नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में अपने चुनाव अभियान के दौरान असम में कहा था कि वे केवल हिंदू शरणार्थियों को देश में आने देंगे। गैर हिंदू शरणार्थियों को शरण नहीं दी जाएगी और जो ग़ैर-हिंदू अवैध शरणार्थी देश में हैं, उन्हें यहां से निकाल दिया जाएगा।

भारत में कुछ लोगों के द्वारा मुसलमानों को लेकर नफ़रत की भावना बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। मीडिया के एक वर्ग का ये सबसे पसंदीदा विषय है। हर शाम कुछ न्यूज़ चैनलों पर घृणा की लहर चल रही होती है।

भारत में जो बातें लोग दिलों में रखते थे, अब वह खुलकर उसे जता रहे हैं। पूरा समाज इस समय बंटा हुआ दिखता है।

रोहिंग्या मुसलमान भी भारत की इसी नफ़रत की राजनीति का शिकार हो गए हैं। उन्हें भारत से निकालना आसान नहीं होगा क्योंकि म्यांमार उन्हें अपना नागरिक ही स्वीकार नहीं करता और शरणार्थियों को जबरन किसी दूसरे देश नहीं भेजा जा सकता है।

लेकिन मोदी सरकार द्वारा उन्हें निर्वासित करने की घोषणा से इन शरणार्थियों का जीवन और भी कठिन हो गया है।

मीडिया के एक वर्ग ने उन्हें जेहादी और उग्रवादी बताकर आम लोगों के दिलोदिमाग में उनके बारे में संदेह पैदा कर दिए हैं।

रोहिंग्या शरणार्थी किसी तरह अपनी जान बचाकर हज़ारों मील का सफर तय करके भारत पहुंचे थे।

यहाँ भी शिविरों में उनका जीवन एक ऐसी मौत की तरह है जिसे जीने के लिए वे मजबूर हैं।

अपने देश (म्यांमार) में उन्हें नस्ल और धर्म के कारण अत्याचार का सामना करना पड़ा। म्यांमार में उनकी बस्तियां जल रही हैं। लाखों लोग सुरक्षित पनाह लेने के लिए हर तरफ़ भाग रहे हैं।

मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि इन स्थितियों में भारत में मौजूद रोहिंग्या शरणार्थियों को निर्वासित करने का मोदी सरकार का फैसला अमानवीय है। इससे जातीय और धार्मिक घृणा का भी पता चलता है।

 

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