भारत के अरुणाचल प्रदेश में बॉर्डर से चीन की सेना द्वारा पांच भारतीयों के कथित अपहरण करने के मामले में भारत के केंद्रीय राज्य मंत्री किरेन रिजिजू के सवाल का जवाब देते हुए चीन ने कड़ा जवाब दिया है। चीन ने कहा है कि वह अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा नहीं मानता बल्कि यह चीन के दक्षिणी तिब्बत का इलाका है।
चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक़ चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता चाओ लिजिएंग ने कहा, ''चीन ने कभी 'कथित' अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं दी, ये चीन के दक्षिणी तिब्बत का इलाका है। हमारे पास भारतीय सेना की ओर से इस इलाके से पांच लापता भारतीयों को लेकर सवाल आया है लेकिन अभी हमारे पास इसे लेकर कोई जानकारी नहीं है।''
भारतीय सेना ने अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी सुबनसिरी ज़िले से पांच लोगों के 'पीपुल्स लिबरेशन आर्मी' (पीएलए) के सैनिकों द्वारा कथित तौर पर अपहरण किए जाने के मुद्दे को चीनी सेना के समक्ष उठाया था।
रविवार की रात एक ट्विट के जरिए केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने इसकी जानकारी देते हुए लिखा था कि भारतीय सेना चीन के जवाब का इंतज़ार कर रही है। उन्होंने लिखा, ''भारतीय सेना ने पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी समकक्ष को संदेश भेजा है, जवाब का इंतज़ार किया जा रहा है।''
दरअसल, रिजिजू ने एक पत्रकार के ट्वीट के जवाब में ये बात लिखी थी। एक पत्रकार ने ट्वीट के ज़रिए पूछा था, ''पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी द्वारा अरुणाचल प्रदेश से पांच भारतीयों के कथित अपहरण को लेकर क्या अपडेट है? क्या विदेश मंत्रालय, किरेन रिजिजू, प्रेमा खांडू इस पर कोई अपडेट साझा करेंगे?''
इस साल जून में लद्दाख सीमा पर भारत और चीन के बीच हुई झड़प में 20 भारतीय जवानों की मौत हुई और इसके बाद से ही दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है।
भारतीय सेना के एक रिटायर्ड जनरल ने नाम ना छापने की शर्त पर बीबीसी से बात करते हुए कहा, ''चीन का अरुणाचल प्रदेश को लेकर ये रूख़ बिल्कुल भी नया नहीं है। इससे पहले भी चीन अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा मानता रहा है। चीन ने पहले ही साफ़ किया है कि वह मैकमोहन रेखा को नहीं मानता। यही वजह है कि तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा के भारत में रिफ्यूजी बनकर रहने पर चीन हमेशा नकारात्मक रहा है।''
''आम तौर पर भारत चीन-भारत सीमा के लगभग 70-80 किलोमीटर पीछे बेस कैंप रखता था लेकिन 1986-87 के दौर से भारतीय सेना सीमा से ये दूरी कम करते हुए अपने हिस्से में ही आगे बढ़ा। हालांकि चीन ने उस वक़्त कड़ी आपत्ति नहीं जताई क्योंकि उस समय भारत-चीन की विकास दर यानी जीडीपी लगभग समान थी लेकिन 2008 में जब भारत अमरीका के क़रीब आया और दोनों देशों के बीच परमाणु संधि हुई तो चीन को बात यकीनन खटकी। अब हालिया समय में भारत की ओर से सीमावर्ती इलाकों में निर्माण कार्य में तेज़ी आई है और यही वजह है कि चीन बॉर्डर को लेकर तनाव पैदा कर रहा है।''
29 अगस्त की रात भी हुई थी झड़प
इससे पहले 29-30 अगस्त की रात भारतीय सेना के मुताबिक़ दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी। इसमें किसी के घायल होने की अब तक कोई सूचना नहीं मिली। भारतीय सेना ने बयान जारी कर कहा था कि चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी यानी पीएलए ने सीमा पर यथास्थिति बदलने की कोशिश की लेकिन सतर्क भारतीय सैनिकों ने ऐसा नहीं होने दिया।
इस बयान के मुताबिक़, ''भारतीय सैनिकों ने पैंगॉन्ग त्सो लेक में चीनी सैनिकों के उकसाने वाले क़दम को रोक दिया है। भारतीय सेना बातचीत के ज़रिए शांति बहाल करने की पक्षधर है लेकिन इसके साथ ही अपने इलाक़े की अखंडता की सुरक्षा के लिए भी प्रतिबद्ध है। पूरे विवाद पर ब्रिगेड कमांडर स्तर पर बैठक जारी है।''
हालाँकि चीन ने अपने सैनिकों के एलएसी को पार करने की ख़बरों का खंडन किया।
चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि चीन की सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा का सख़्ती से पालन करती है और चीन की सेना ने कभी भी इस रेखा को पार नहीं किया है। दोनों देशों की सेना इस मुद्दे पर संपर्क में हैं।
दूसरी तरफ़ चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा है, ''भारत-चीन सीमा पर स्थिरता बनाए रखने के लिए चीन प्रतिबद्ध है। स्थिति को तनावपूर्ण बनाने या उकसाने के लिए चीन कभी भी पहल नहीं करेगा।''
उन्होंने फ्रेंच इंस्ट्टीयूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशन में भाषण देते हुए कहा, ''दोनों देशों के बीच अभी तक सीमा तय नहीं की गई है, इसलिए समस्याएँ हैं। चीन अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को मज़बूती से बनाए रखेगा, और भारतीय पक्ष के साथ बातचीत के माध्यम से सभी प्रकार के मुद्दों का हल निकालने के लिए तैयार है।''
उन्होंने ये भी कहा कि चीन 'गुड नेबरहुड' की नीति पर विश्वास रखता है, और अपने पड़ोसियों के साथ दोस्ताना और स्थिर संबंध चाहता है।
भारत और चीन के बीच 3,500 किलोमीटर लंबी सरहद है और दोनों देश सीमा की वर्तमान स्थिति पर सहमत नहीं हैं। इसे लेकर दोनों देशों में 1962 में जंग भी हो चुकी है।
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