दिल्ली विश्वविद्यालय शुतुरमुर्ग की तरह बर्ताव कर रहा है: दिल्ली उच्च न्यायालय

 24 Oct 2017 ( न्यूज़ ब्यूरो )
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय में कई बार शिक्षकों को धमकाने के आरोपी विधि के छात्र के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय विश्वविद्यालय रेत में अपना सिर गढ़ाकर शुतुरमुर्ग की तरह बर्ताव कर रहा है।

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति दीपक शर्मा की पीठ ने विश्वविद्यालय से कहा, ''पूरी तरह से कानूनी व्यवस्था का अभाव है और आपने शुतुरमुर्ग की तरह अपना सिर रेत में घुसा रखा है।''

पीठ ने विश्वविद्यालय से यह भी कहा कि अदालत कानून का पालन नहीं करने वाले तत्वों को परिसर में आजादी से घूमने की इजाजत नहीं देगी।

अदालत पिछले साल कुछ छात्रों द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि संकाय के डीन और प्रोफेसरों के साथ कथित दुर्व्यवहार के मामले में दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस मामले में पीठ ने दिल्ली पुलिस से भी नाराजगी जताई और कहा कि यह कानून व्यवस्था की बात है और अदालतों से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वे डीयू में विधि संकाय में पुलिस की तैनाती कराएं।

इससे पहले पुलिस ने अदालत को बताया था कि डूसू के पूर्व अध्यक्ष सतेंद्र अवाना के खिलाफ कई प्राथमिकी दर्ज होने के बावजूद वह शिक्षकों को धमकाता रहता था।

पुलिस की ओर से स्थाई वकील राहुल मेहरा ने कहा कि निचली अदालत में 17 अक्तूबर को आरोपपत्र दाखिल किया गया था और वहां अगली सुनवाई की तारीख नौ जनवरी, 2018 है। इसके बाद पीठ ने मामले में आगे सुनवाई के लिए 15 नवंबर की तारीख तय की ताकि उसके द्वारा नियुक्त न्यायमित्र पुलिस की ओर से दाखिल आरोपपत्रों का अध्ययन कर सकें। दिल्ली पुलिस को भी मामले में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए वक्त दिया गया है।

उल्लेखनीय है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने कुछ दिन पहले ही कहा था कि अध्यापकों को आतंकित करना बहुत ही चौंकाने वाला कृत्य है जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता।

अदालत को बताया गया था कि दिल्ली विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई कर रहे एक छात्र ने परीक्षा में नकल करते हुए पकड़े जाने पर एक महिला प्राध्यापक को धमकी दी थी जिसके बाद उच्च न्यायालय ने यह बात कही। घटना पर गुस्सा जाहिर करते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति नजमी वजीरी की एक पीठ ने कहा था कि ऐसे संस्थानों को विद्यालय कहना और ऐसे व्यक्तियों को छात्र के तौर पर संबोधित करना अभिशाप है।

 

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