30 नवंबर 2014 की रात 11 बजे लोया ने अपनी पत्नी शर्मिला को अपने मोबाइल से नागपुर से फोन किया। करीब 40 मिनट हुई बातचीत में वे दिन भर की अपनी व्यस्तताएं उनहें बताते रहे। लोया अपने एक सहकर्मी जज सपना जोशी की बेटी की शादी में हिस्सा लेने नागपुर गए थे। उन्होंने शुरुआत में नहीं जाने का आग्रह किया था, लेकिन उनके दो सहकर्मी जजों ने साथ चलने का दबाव बनाया। लोया ने पत्नी को बताया कि शादी से होकर वे आचुके हैं और बाद में वे रिसेप्शन में गए। उन्होंने बेटे अनुज का हालचाल भी पूछा। उन्होंने पत्नी को बताया कि वे साथी जजों के संग रवि भवन में रुके हुए थे। यह नागपुर के सिविल लाइंस इलाके में स्थित एक सरकारी वीआइपी गेस्टहाउस है।
लोया ने कथित रूप से यह आखिरी कॉल की थी और यही उनका अपने परिवार के साथ हुआ आखिरी कथित संवाद भी था। उनके परिवार को उनके निधन की खबर अगली सुबह मिली।
उनके पिता हरकिशन लोया से जब मैं पहली बार लातूर शहर के करीब स्थित उनके पैतृक गांव गाटेगांव में नवंबर 2016 में मिला, तब उन्होंने बताया था कि 1 दिसंबर 2014 को तड़के ”मुंबई में उसकी पत्नी, लातूर में मेरे पास और धुले, जलगांव व औरंगाबाद में मेरी बेटियों के पास कॉल आया।” इन्हें बताया गया कि ”बृज रात में गुज़र गए, उनका पंचनामा हो चुका है और उनका पार्थिव शरीर लातूर जिले के गाटेगांव स्थित हमारे पैतृक निवास पर भेजा जा चुका है।” उन्हेांने बताया, ”मुझे लगा कि कोई भूचाल आ गया हो और मेरी जिंदगी बिखर गई।”
परिवार को बताया गया था कि लोया की मौत कार्डियक अरेस्ट (दिल का दौरा) से हुई थी। हरकिशन ने बताया, ”हमें बताया गया था कि उन्हें सीने में दर्द हुआ था, जिसके बाद उनहें नागपुर के एक निजी अस्पताल दांडे हास्पिटल में ऑटोरिक्शा से ले जाया गया, जहां उन्हें कुछ चिकित्सा दी गई।” लोया की बहन बियाणी दांडे हास्पिटल को ”एक रहस्यमय जगह” बताती हैं और कहती हैं कि उन्हें ”बाद में पता चला कि वहां ईसीजी यूनिट काम नहीं कर रही थी।।” बाद में हरकिशन ने बताया, लोया को ”मेडिट्रिना हॉस्पिटल में शिफ्ट कर दिया गया”- शहर का एक और निजी अस्पताल- ”जहां उन्हें पहुंचते ही मृत घोषित कर दिया गया।”
अपनी मौत के वक्त लोया केवल एक ही मुकदमे की सुनवाई कर रहे थे, जो सोहराबुद्दीन हत्याकांड था। उस वक्त पूरे देश की निगाह इस मुकदमे पर लगी हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में आदेश दिया था कि इस मामले की सुनवाई को गुजरात से हटाकर महाराष्अ्र में ले जाया जाए। उसका कहना था कि उसे ”भरोसा है कि सुनवाई की शुचिता को कायम रखने के लिए ज़रूरी है कि उसे राज्य से बाहर शिफ्ट कर दिया जाए।” सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि इसकी सुनवाई शुरू से लेकर अंत तक ही एक ही जज करेगा, लेकिन इस आदेश का उल्लंघन करते हुए पहले सुनवाई कर रहे जज जेटी उत्पट को 2014 के मध्य में सीबीआइ की विशेष अदालत से हटा कर उनकी जगह लोया को ला दिया गया।
उत्पअ ने 6 जून 2014 को अमित शाह को अदालत में पेश न होने को लेकर फटकार लगाई थी। अगली तारीख 20 जून को भी अमित शाह नहीं पेश हुए। उत्पट ने इसके बाद 26 जून की तारीख मुकर्रर की। सुनवाई से एक दिन पहले 25 जून को उनका तबादला हो गया। इसके बाद आए लोया ने 31 अक्टूबर 2014 को सवाल उठाया कि आखिर शाह मुंबई में होते हुए भी उस तारीख पर क्यों नहीं कोर्ट आए। उन्होंने अगली सुनवाई की तारीख 15 दिसंबर तय की थी।
लोया की 1 दिसंबर को हुई मौत की खबर अगले दिन कुछ ही अखबारों में छपी और इसे मीडिया में उतनी तवज्जो नहीं मिल सकी। दि इंडियन एक्सप्रेस ने लोया की ”मौत दिल का दौरा पड़ने से” हुई बताते हुए लिखा, ”उनके करीबी सूत्रों ने बताया कि लोया की मेडिकल हिस्ट्री दुरुस्त थी।” मीडिया का ध्यान कुछ वक्त के लिए 3 दिसंबर को इस ओर गया जब तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने संसद के बाहर इस मामले में जांच की मांग को लेकर एक प्रदर्शन किया जहां शीतसत्र चल रहा था। अगले ही दिन सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन ने सीबीआइ को एक पत्र लिखकर लोया की मौत पर आश्चर्य व्यक्त किया।
सांसदों के प्रदर्शन या रुबाबुद्दीन के ख़त का कोई नतीजा नहीं निकला। लोया की मौत के इर्द-गिर्द परिस्थितियों को लेकर कोई फॉलो-अप ख़बर मीडिया में नहीं चली।
लोया के परिजनों से कई बार हुए संवाद के आधार पर मैंने इस बात को सिलसिलेवार ढंग से दर्ज किया कि सोहराबुद्दीन के केस की सुनवाई करते वक्त उन्हें किन हालात से गुज़रना पड़ा और उनकी मौत के बाद क्या हुआ। बियाणी ने मुझे अपनी डायरी की प्रति भी दी जिसमें उनके भाई की मौत से पहले और बाद के दिनों का विवरण दर्ज है। इन डायरियों में उन्होंने इस घटना के कई ऐसे आयामों को दर्ज किया है जो उन्हें परेशान करते थे। मैं लोया की पत्नी और बेटे के पास भी गया, लेकिन उन्होंने कुछ भी बोलने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उन्हें अपनी जान का डर है।
धुले निवासी बियाणी ने मुझे बताया कि 1 दिसंबर 2014 की सुबह उनके पास एक कॉल आई। दूसरी तरफ़ कोई बार्डे नाम का व्यक्ति था जो खुद को जज कह रहा था। उसने उन्हें लातूर से कोई 30 किलामीटर दूर स्थित गाटेगांव निकलने को कहा जहां लोया का पार्थिव शरीर भेजा गया था। इसी व्यक्ति ने बियाणी और परिवार के अन्य सदस्यों को सूचना दी थी कि लाश का पंचनामा हो चुका है और मौत की वजह दिल का दौरा पड़ना है।
लोया के पिता आम तौर से गाटेगांव में रहते हैं लेकिन उस वक्त वे लातूर में अपनी एक बेटी के घर पर थे। उनके पास भी फोन आया था कि उनके बेटे की लाश गाटेगांव भेजी जा रही है। बियाणी ने मुझे बताया था, ”ईश्वर बहेटी नाम के आरएसएस के एक कार्यकर्ता ने पिता को बताया था कि वह लाश के गाटेगांव पहुंचने की व्यवस्था कर रहा है। कोई नहीं जानता कि उसे क्यों, कब और कैसे बृज लोया की मौत की खबर मिली।”
लोया की एक और बहन सरिता मांधाने औरंगाबाद में ट्यूशन सेंटर चलाती हैं और उस वक्त वे लातूर में थीं। उन्होंने मुझे बताया कि उनके पास सुबह करीब 5 बजे बार्डे का फोन आया था यह बताने के लिए कि लोया नहीं रहे। उन्होंने बताया, ”उसने कहा कि बृज नागपुर में गुज़र गए हैं और हमें उसने नागपुर आने को कहा।” वे तुरंत लातूर के हॉस्पिटल अपने भतीजे को लेने निकल गईं जहां वह भर्ती था, लेकिन ”हम जैसे ही अस्पताल से निकल रहे थे, ईश्वर बहेटी नाम का व्यक्ति वहां आ पहुंचा। मैं अब भी नहीं जानती कि उसे कैसे पता था कि हम सारदा हॉस्पिटल में थे।” मांधाने के अनुसार बहेटी ने उन्हें बताया कि वे रात से ही नागपुर के लोगों से संपर्क में हैं और इस बात पर ज़ोर दिया कि नागपुर जाने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि लाश को एम्बुलेंस से गाटेगांव लाया जा रहा है।” उन्होंने कहा, ”वह हमें अपने घर ले गया यह कहते हुए कि वह सब कुछ देख लेगा।” (इस कहानी के छपने के वक्त तक बहेटी को भेजे मेरे सवालों का जवाब नहीं आया था)।
बियाणी के गाटेगांव पहुंचने तक रात हो चुकी थी- बाकी बहनें पहले ही पैतृक घर पहुंच चुकी थीं। बियाणी की डायरी में दर्ज है कि उनके वहां पहुंचने के बाद लाश रात 11.30 के आसपास वहां लाई गई। चौंकाने वाली बात यह थी कि नागपुर से लाई गई लाश के साथ लोया का कोई भी सहकर्मी मौजूद नहीं था। केवल एम्बुलेंस का ड्राइवर था। बियाणी कहती हैं, ”यह चौंकाने वाली बात थी। जिन दो जजों ने उनसे आग्रह किया था कि वे शादी में नागपुर चलें, वे साथ नहीं थे। परिवार को मौत और पंचनामे की खबर देने वाले मिस्टर बार्डे भी साथ नहीं थे। यह सवाल मुझे परेशान करता है: आखिर इस लाश के साथ कोई क्यों नहीं था?” उनकी डायरी में लिखा है, ”वे सीबीआइ कोर्ट के जज थे। उनके पास सुरक्षाकर्मी होने चाहिए थे और कायदे से उन्हें लाया जाना चाहिए था।”
लोया की पत्नी शर्मिला और उनकी बेटी अपूर्वा व बेटा अनुज मुंबई से गाटेगांव एकाध जजों के साथ आए। उनमें से एक ”लगातार अनुज और दूसरों से कह रहा था कि किसी से कुछ नहीं बोलना है।” बियाणी ने मुझे बताया, ”अनुज दुखी था और डरा हुआ भी था, लेकिन उसने अपना हौसला बनाए रखा और अपनी मां के साथ बना रहा।”
बियाणी बताती हैं कि लाश देखते ही उन्हें दाल में कुछ काला जान पड़ा। उन्होंने मुझे बताया, ”शर्ट के पीछे उनकी गरदन पर खून के धब्बे थे।” उन्होंने यह भी बताया कि उनका ”चश्मा गले से नीचे था।” मांधाने ने मुझे बताया कि लोया का चश्मा ”उनकी देह के नीचे फंसा हुआ था।”
उस वक्त बियाणी की डायरी में दर्ज एक टिप्पणी कहती है, ”उनके कॉलर पर खून था। उनकी बेल्ट उलटी दिशा में मोड़ी हुई थी। पैंट की क्लिप टूटी हुई थी। मेरे अंकल को भी महसूस हुआ था कि कुछ संदिग्ध है।” हरकिशन ने मुझे बताया, ”उसके कपड़ों पर खून के दाग थे।” मांधाने ने बताया कि उन्होंने भी ”गरदन पर खून” देखा था। उन्होंने बताया कि ”उनके सिर पर चोट थी और खून था… पीछे की तरफ” और ”उनकी शर्ट पर खून के धब्बे थे।” हरकिशन ने बताया, ”उसकी शर्ट पर बाएं कंधे से लेकर कमर तक खून था।”
नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज द्वारा जारी उनकी पंचनामा रिपोर्ट हालांकि ”कपड़ों की हालत- पानी से भीगा, खून से सना या क़ै अथवा फीकल मैटर से गंदा” के अंतर्गत हस्तलिखित एंट्री दर्ज करती है- ”सूखा”।
बियाणी को लाश की स्थिति संदिग्ध लगी क्योंकि एक डॉक्टर होने के नाते ”मैं जानती हूं कि पीएम के दौरन खून नहीं निकलता क्योंकि हृदय और फेफड़े काम नहीं कर रहे होते हैं।” उन्होंने कहा कि दोबारा पंचनामे की मांग भी उन्होंने की थी, लेकिन वहां इकट्ठा लोया के दोस्तों और सहकर्मियों ने ”हमें हतोत्साहित किया, यह कहते हुए कि मामले को और जटिल बनाने की ज़रूरत नहीं है।”
हरकिशन बताते हैं कि परिवार तनाव में था और डरा हुआ था लेकिन लोया की अंत्येष्टि करने का उस पर दबाव बनाया गया।
कानूनी जानकार कहते हैं कि यदि लोया की मौत संदिग्ध थी- यह तथ्य कि पंचनामे का आदेश दिया गया, खुद इसकी पुष्टि करता है- तो एक पंचनामा रिपोर्ट बनाई जानी चाहिए थी और एक मेडिको-लीगल केस दायर किया जाना चाहिए था। पुणे के एक वरिष्ठ वकील असीम सरोदे कहते हैं, ”कानूनी प्रक्रिया के मुताबिक अपेक्षा की जाती है कि पुलिस विभाग मृतक के तमाम निजी सामान को ज़ब्त कर के सील कर देगा, पंचनामे में उनकी सूची बनाएगा और जस का तस परिवार को सौंप देगा।” बियाणी कहती हैं कि परिवार को पंचनामे की प्रति तक नहीं दी गई।
लोया का मोबाइल फोन परिवार को लौटा दिया गया लेकिन बियाणी कहती हैं कि बहेटी ने उसे लौटाया, पुलिस ने नहीं। वे बताती हैं, ”हमें तीसरे या चौथे दिन उनका मोबाइल मिला। मैंने तुरंत उसकी मांग की थी। उसमें उनकी कॉल और बाकी चीज़ों का विवरण होता। हमें सब पता चल गया होता अगर वह मिल जाता। और एसएमएस भी। इस खबर के एक या दो दिन पहले एक संदेश आया था, ”सर, इन लोगों से बचकर रहिए।’ वह एसएमएस फोन में था। बाकी सब कुछ डिलीट कर दिया गया था।”
बियाणी के पास लोया की मौत वाली रात और अगली सुबह को लेकर तमाम सवाल हैं। उनमें एक सवाल यह था कि लोया को ऑटोरिक्शा में क्यों और कैसे अस्पताल ले जाया गया जबकि रवि भवन से सबसे करीबी ऑटो स्टैंड दो किलोमीटर दूर है। बियाणी कहती हैं, ”रवि भवन के पास कोई ऑटो स्टैंड नहीं है और लोगों को तो दिन के वक्त भी रवि भवन के पास ऑटो रिक्शा नहीं मिलता। उनके साथ के लोगों ने आधी रात में ऑटोरिक्शा का इंतज़ाम कैसे किया होगा?”
बाकी सवालों के जवाब भी नदारद हैं। लोया को अस्पताल ले जाते वक्त परिवार को सूचना क्यों नहीं दी गई? उनकी मौत होते ही ख़बर क्यों नहीं की गई? पंचनामे की मंजूरी परिवार से क्यों नहीं ली गई या फिर प्रक्रिया शुरू करने से पहले ही क्यों नहीं सूचित कर दिया गया कि पंचनामा होना है? पोस्ट-मॉर्टम की सिफारिश किसने की और क्यों? आखिर लोया की मौत के बारे ऐसा क्या संदिग्ध था कि पंचनामे का सुझाव दिया गया? दांडे अस्पताल में उन्हें कौन सी दवा दी गई? क्या उस वक्त रवि भवन में एक भी गाड़ी नहीं थी लोया को अस्पताल ले जाने के लिए, जबकि वहां नियमित रूप से मंत्री, आइएएस, आइपीएस, जज सहित तमाम वीआइपी ठहरते हें? महाराष्ट्र असेंबली का शीत सत्र नागपुर में 7 दिसंबर से शुरू होना था और सैकड़ों अधिकारी पहले से ही इसकी तैयारियों के लिए वहां जुट जाते हैं। रवि भवन में 30 नवंबर और 1 दिसंबर को ठहरे बाकी वीआइपी कौन थे?” वकील सरोदे कहते हैं, ”ये सारे सवाल बेहद जायज़ हैं। दांडे अस्पताल में लोया को दी गई चिकित्सा की सूचना परिवार को क्यों नहीं दी गई? क्या इन सवालों के जवाब से किसी के लिए दिक्कत पैदा हो सकती है?”
बियाणी कहती हैं, ”ऐसे सवाल अब भी परिवार, मित्रों और परिजनों को परेशान करते हैं।”
वे कहती हैं कि उनका संदेह और पुख्ता हुआ जब लोया को नागपुर जाने के लिए आग्रह करने वाले जज परिवार से मिलने उनकी मौत के ”डेढ़ महीने बाद” तक नहीं आए। इतने दिनों बाद जाकर परिवार को लोया के आखिरी क्षणों का विवरण जानने को मिल सका। बियाणी के अनुसार दोनों जजों ने परिवार को बताया कि लोया को सीने में दर्द रात साढ़े बारह बजे हुआ था, फिर वे उनहें दांडे अस्पताल एक ऑटोरिक्शा में ले गए, और वहां ”वे खुद ही सीढ़ी चढ़कर ऊपर गए और उन्हें कुछ चिकित्सा दी गई। उन्हें मेडिट्रिना अस्पताल ले जाया गया जहां पहुंचते ही उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।”
इसके बावजूद कई सवालों के जवाब नहीं मिल सके हैं। बियाणी ने बताया, ”हमने दांडे अस्पताल में दी गई चिकित्सा के बारे में पता करने की कोशिश की लेकिन वहां के डॉक्टरों और स्टाफ ने कोई भी विवरण देने से इनकार कर दिया।”
मैंने लोया की पोस्ट-मॉर्टम निकलवाई जो नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में की गई थी। यह रिपोर्ट अपने आप में कई सवालों को जन्म देती है।
रिपोर्ट के हर पन्ने पर सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर, सदर थाना, नागपुर के दस्तखत हैं, साथ ही एक और व्यक्ति के दस्तखत हैं जिसने नाम के साथ लिखा है ”मैयाताजा चलतभाऊ” यानी मृतक का चचेरा भाई। ज़ाहिर है, पंचनामे के बाद इसी व्यक्ति ने लाश अपने कब्ज़े में ली होगी। लोया के पिता कहते हैं, ”मेरा कोई भाई या चचेरा भाई नागपुर में नहीं है। किसने इस रिपोर्ट पर साइन किया, यह सवाल भी अनुत्तरित है।”
इसके अलावा, रिपोर्ट कहती है कि लाश को मेडिटिना अस्पताल से नागपुर मेडिकल कॉलेज सीताबर्दी पुलिस थाने के द्वारा भेजा गया और उसे लेकर थाने का पंकज नामक एक सिपाही आया था, जिसकी बैज संख्या 6238 है। रिपोर्ट के मुताबिक लाश 1 दिसंबर 2014 को दिन में 10.50 पर लाई गई, पोस्ट-मॉर्टम 10.55 पर शुरू हुआ और 11.55 पर खत्म हुआ।
रिपोर्ट यह भी कहती है कि पुलिस के अनुसार लोया को ”1/12/14 की सुबह 4.00 बजे सीने में दर्द हुआ और 6.15 बजे मौत हुई।” इसमें कहा गया है कि ”पहले उन्हें दांडे अस्पताल ले जाया गया और फिर मेडिट्रिना अस्पताल लाया गया जहां उन्हें मृत घोषित किया गया।”
रिपोर्अ में मौत का वक्त सबह 6.15 बजे बेमेल जान पड़ता है क्योंकि लोया के परिजनों के मुताबिक उन्हें सुबह 5 बजे से ही फोन आने लग गए थे। मेरी जांच के दौरान नागपुर मेडिकल कॉलेज और सीताबर्दी थाने के दो सूत्रों ने बताया कि उन्हें लोया की मौत की सूचना आधी रात को ही मिल चुकी थी और उन्होंने खुद रात में लाश देखी थी। उनके मुताबिक पोस्ट-मॉर्टम आधी रात के तुरंत बाद ही कर दिया गया था। परिवार के लोगों को आए फोन के अलावा सूत्रों के दिए विवरण पोस्ट-मॉर्टम रिपोर्ट के इस दावे पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं कि लोया की मौत का समय सुबह 6.15 बजे था।
मेडिकल कॉलेज के सूत्र- जो पोस्ट-मॉर्टम जांच का गवाह है- ने मुझे यह भी बताया कि वह जानता था कि ऊपर से आदेश आया था कि ”इस तरह से लाश में चीरा लगाओ कि पीएम हुआ जान पड़े और फिर उसे सिल दो।”
रिपोर्ट मौत की संभावित वजह ”कोरोनरी आर्टरी इनसफीशिएंसी” को बताती है। मुंबई के प्रतिष्ठित कार्डियोलॉजिस्ट हसमुख रावत के मुताबिक ”आम तौर से बुढ़ापे, परिवार की हिस्ट्री, धूमंपान, उच्च कोलेस्ट्रॉल, उच्च रक्तचाप, मोटापा, मधुमेह आदि के कारण कोरोनरी आर्टरी इनसफीशिएंसी होती है।” बियाणी कहती हैं कि उनके भाई के साथ ऐसा कुछ भी नहीं था। वे कहती हैं, ”बृज 48 के थे। हमारे माता-पिता 85 और 80 साल के हैं और वे स्वस्थ हैं। उन्हें दिल की बीमारी की कोई शिकायत नहीं है। वे केवल चाय पीते थे, बरसों से दिन में दो घंटे टेबल टेनिस खेलते आए थे, उन्हें न मधुमेह था न रक्तचाप।”
बियाणी ने मुझे बताया कि उन्हें अपने भाई की मौत की आधिकारिक मेडिकल वजह विश्वास करने योग्य नहीं लगती। वे कहती हैं, ”मैं खुद एक डॉक्टर हूं और एसिडिटी हो या खांसी, छोटी सी शिकायत के लिए भी बृज मुझसे ही सलाह लेते थे। उन्हें दिल के रोग की कोई शिकायत नहीं थी और हमारे परिवार में भी इसकी कोई हिस्ट्री नहीं है।”
(निरंजन टाकले की 21 नवंबर 2017 को लिखी यह रिपोर्ताज अंग्रेज़ी पत्रिका दि कारवां से साभार प्रकाशित है - संपादक)
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