वैज्ञानिकों पर जल्द-से-जल्द कोरोना वायरस की प्रभावकारी वैक्सीन बनाने का भारी दबाव है।
सोशल डिस्टैंसिंग से वायरस के फैलने की रफ़्तार को क़ाबू किया जा सकता है, मगर जानकारों को लगता है कि महामारी पर रोक लगाने का एकमात्र उपाय वैक्सीन है।
लेकिन, ऐसी बहुत सारी वैक्सीन होती हैं जो आरंभ में तो काफ़ी उम्मीद जगाती हैं, मगर जब ज़्यादा लोगों पर टेस्ट किया जाता है तो नाकाम साबित होती हैं।
इन परीक्षणों में इस कथित थर्ड फ़ेज़ का बड़ा महत्व होता है, क्योंकि ये वो चरण होता है जिसमें पता चलता है कि वैक्सीन का कोई साइड इफ़ेक्ट हो रहा है कि नहीं।
वैक्सीन करता क्या है? वो दरअसल इंसानों की प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ा देता है जिससे वो बीमारियाँ पैदा करने वाले वायरस पर हमला कर उसे नष्ट कर देता है।
लेकिन, प्रतिरोधी क्षमता अगर ग़लत तरीक़े से बढ़ी तो उससे समस्याएँ सुलझने की जगह और बढ़ सकती हैं।
यही वजह है कि वैक्सीनों के परीक्षण को लेकर सख़्त नियम और दिशानिर्देश बनाए गए हैं, और इनकी अवहेलना करना ख़तरनाक हो सकता है।
ब्रिटेन में, ऐसा विचार चल रहा है कि अगर नए साल से पहले कोई वैक्सीन आ जाती है, तो बग़ैर लाइसेंस के ही उसके इस्तेमाल किए जाने को लेकर नए नियम लाए जाएँ। लेकिन तब भी, सुरक्षा के सख़्त मानदंडों का पालन करना होगा।
बिना ठीक से परीक्षण किए किसी वैक्सीन के इस्तेमाल के ख़तरे क्या हो सकते हैं, इसका उदाहरण 2009 की एक घटना से मिलता है, जब एचवनएनवन स्वाइन फ़्लू के लिए पैन्डेमरिक्स नाम के एक जल्दी से बनाए गए टीके का इस्तेमाल हुआ और इससे लोगों को नार्कोलेप्सी नाम की नींद की बीमारी होने लगी।
टीके को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दिया बड़ा बयान
विश्व स्वास्थ्य संगठन को उम्मीद नहीं है कि अगले साल यानी साल 2021 तक भी कोविड 19 से सुरक्षा के लिहाज़ से बड़े स्तर पर टीकाकरण हो सकेगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रवक्ता ने शुक्रवार को जांच कराने के महत्व पर विशेष बल दिया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रवक्ता मार्गरेट हैरिस ने कहा कि अभी तक एडवांस क्लीनिकल स्टेज के किसी भी टीके के लिए यह नहीं कहा जा सकता है कि यह पूरी तरह प्रभावी है। किसी भी टीके ने अब तक पचास फ़ीसदी प्रभावकारिता के संकेत भी नहीं दिये हैं।
जेनेवा में एक ब्रीफ़िंग के दौरान उन्होंने कहा कि हम वास्तव में अगले साल के मध्य तक व्यापक टीकाकरण देखने की उम्मीद नहीं कर रहे हैं।
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