कोरोना महामारी: अमरीका में 2.05 करोड़ लोगों की नौकरियां गईं, बेरोज़गारी दर हुई 14.7 फीसदी

 08 May 2020 ( न्यूज़ ब्यूरो )
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कोरोना वायरस महामारी के कारण इस साल अप्रैल में अमरीका में 2.05 करोड़ लोग बेरोज़गार हुए हैं जिसके बाद यहां बेरोज़गारी दर बढ़ कर 14.7 फीसदी हो गई है।

1930 में आए ग्रेट डिप्रेशन के बाद से ये बेरोज़गारी दर अब तक सबसे ज्यादा है।

दो महीने पहले तक देश में बेरोज़गारी की दर 3.5 फीसदी थी जो बीते पचास सालों में सबसे कम था।

हालांकि अमरीकी राष्ट्रपति ने कहा है कि उन्हें बेरोज़गारी दर के बढ़ने की पूरी आशंका था और उन्हें उम्मीद है कि भविष्य में अर्थव्यवस्था में विकास होगा।

फॉक्स न्यूज़ चैनल पर एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि अप्रैल में नौकरियां जाने की बात ''चौंकाने वाली'' नहीं है और इसकी उन्हें ''पूरी आशंका'' थी।

फॉक्स ऐंड फ्रेंड्स नाम के इस कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि "इसके लिए डेमोक्रेट नेता भी उन्हें दोष नहीं दे रहे। लेकिन जो काम मैं कर सकता हूं वो है इन नौकरियों को फिर से वापस लाना।''  

कोरोना महामारी की शुरुआत के वक्त से ही इसका असर अमरीका की अर्थव्यवस्था पर पड़ता दिख रहा है और यहां बीते सालों की अपेक्षा विकास दर में गिरावट नज़र आ रही है।

कोरोना के कारण दुकानें बंद हैं और रीटेल सेल्स में रिकॉर्ड गिरावट आई है।

सरकार के ब्यूरो ऑफ़ लेबर स्टैटिस्टिक्स की प्रमुख रह चुकी अर्थशात्री एरिका ग्रोशेन मौजूदा स्थिति को ऐतिहासिक बताती हैं। वो कहती हैं, "इस महामारी से मुक़ाबला करने के लिए हमने अपनी अर्थव्यवस्था को एक तरह के कोमा में डाल दिया है। इसका नतीजा ये हुआ है कि बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियां छिन गई हैं।''

एरिका ग्रोशेन फ़िलहाल कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में पढ़ाती हैं।

अमरीकी लेबर विभाग की रिपोर्ट के अनुसार अर्थव्यवस्था के सभी सेक्टर में गिरावट दर्ज की जा रही है।

सबसे अधिक प्रभावित हॉस्पिटालिटी सेक्टर है जहां क़रीब 77 लाख नौकरियां गई हैं। वहीं शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में करीब 25 लाख नौकरियां और रीटेल सेक्टर में क़रीब 21 लाख लोगों की नौकरियां गई हैं।

लेबर विभाग का कहना है कि 1.81 करोड़ नौकरियां अस्थाई रूप से गई हैं और कंपनियों को उम्मीद है कि स्थिति में सुधार के साथ अर्थव्यवस्था भी फिर से दुरुस्त हो जाएगी।

हालांकि अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इस महामारी के कारण कंपनियों के काम करने के तरीकों में बदलाव होगा और इसका असर लंबे वक्त तक रह सकता है।

उनका मानना है कि लॉकडाउन जितनी अधिक समय तक रहेगा, अर्थव्यवस्था को नुक़सान उतना ही अधिक होगा।

 

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