भारत के राज्य कर्नाटक में कन्नड़ पाठ्यपुस्तक के एक पाठ में विनायक दामोदर सावरकर को शामिल किया गया है, जो सोशल मीडिया पर काफी वायरल है। सोशल मीडिया पर इसका मज़ाक भी उड़ाया जा रहा है।
दरअसल इस पाठ में कहा गया है कि सावरकर अंडमान द्वीप समूह की सेलुलर जेल में बुलबुल के पंख पर बैठकर उड़ते थे।
इस पाठ का नाम कलावनु गेद्दावरु है। इसका मतलब है कि जो धारा के ख़िलाफ़ जीतते हैं। ये पाठ केटी गट्टी द्वारा लिखा गया एक यात्रा वृत्तांत है। लेखक केटी गट्टी ने जेल में उस कोठरी का दौरा किया था जहां सावरकर 1911 से 1921 तक कैद रहे।
ये पाठ कर्नाटक में रोहित चक्रतीर्थ की अध्यक्षता वाली पाठ्यपुस्तक संशोधन कमेटी ने संशोधित पाठ्यक्रम में शामिल किया। पाठ्यक्रम में इस पाठ पर विवाद होने के बाद इसे हटा दिया गया है।
जेल में सावरकर के जीवन की चर्चा करते हुए लेखक ने एक पैराग्राफ में जिक्र किया है कि कैसे पीछे की दीवार में एक छोटा सा छेद था जिससे आकाश भी नहीं देखा जा सकता था। कहीं से बुलबुल पक्षी उड़कर इसी छेद से कोठरी में आ जाते थे और सावरकर उनके पंखों पर बैठकर हर रोज मातृभूमि का भ्रमण करते थे।
लेखक और डेटा वैज्ञानिक अरुण कृष्णन ने कहा, ''मैं मानता हूं कि हमें सावरकर को अपने स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में शामिल करने की जरूरत है, लेकिन क्या इसे इस तरीके से किया जाना चाहिए। सावरकर खुद इसे देखकर शर्मिंदा महसूस करते।''
एक अधिकारी की तरफ से ये बताया गया कि लेखक ने इसका इस्तेमाल एक रूपक की तरह किया था।
इसके जवाब में पूर्व कांग्रेस मंत्री प्रियांक खड़गे ने ट्वीट कर कहा कि ऐसा नहीं लगता है कि इसे एक रूपक की तरह कहा गया था।
हालांकि टेक्स्ट बुक सोसायटी के प्रबंध निदेशक मेडगौड़ा ने बीबीसी हिंदी को बताया, ''यह लेखक की कल्पना है। पाठ्यपुस्तक रिविजन कमेटी ने ये फैसला लिया था। अभी तक हमें सरकार की ओर से कोई निर्देश नहीं मिला है। हम लोग इंतज़ार कर रहे हैं।''
बीजेपी का क्या कहना है
इस मामले पर बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव सी टी रवि ने मीडिया से बातचीत में कहा कि, "मातृभूमि के प्रति सावरकर के प्रेम ने उन्हें कैसे लोगों से जोड़ा, ये बताने के लिए लेखक ने कल्पना का सहारा लिया। आपको इसे प्रैक्टिकल होकर देखने की ज़रूरत नहीं है। अगर आप कल्पना करें तो आप दुनिया में कई जगहों पर हो सकते हैं।''
कर्नाटक के प्राइमरी एंड सेकेंडरी शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने इस मामले पर टिप्पणी करने से मना कर दिया।
पहले भी हो चुका है विवाद
कुछ महीने पहले भी पाठ्यपुस्तकों का कंटेंट कर्नाटक में बीजेपी सरकार के लिए शर्मिंदगी का कारण बन गया था। उस समय 12वीं शताब्दी के समाज सुधारक और लिंगायत समुदाय के संस्थापक बसवन्ना के कथनों को गलत तरीके से पेश करने को लेकर शिकायत की गई थी।
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