अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि उसके पास इस बात के पक्के सबूत हैं कि म्यांमार की सेना ने योजनाबद्ध तरीक़े से रोहिंग्या मुसलमानों के घरों को आग लगाई है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों में म्यांमार के हिंसाग्रस्त रखाइन प्रांत में 80 से ज़्यादा जगहों पर भयंकर आग लगने का पता चलता है।
इसके मुताबिक़, प्रत्यक्षदर्शियों ने खुद बताया है कि म्यांमार की सेना और हमलावर गिरोहों ने घर जलाने के लिए पेट्रोल और रॉकेट लॉंचर का इस्तेमाल किया और अंधाधुंध गोलीबारी कर रोहिंग्या निवासियों की हत्याएं कीं।
एमनेस्टी इंटरनेशनल से जुड़े रिसर्चर ओलफ़ ब्लूमक्विस्ट ने कहा, ''हमने अलग-अलग स्रोतों से जो जानकारियां जुटाई हैं, उससे ये साफ पता चलता है कि म्यांमार के सुरक्षा बलों की ओर से नस्लीय सफ़ाये का अभियान चलाया जा रहा है। रखाइन प्रांत जल रहा है।''
ओलफ़ ब्लूमक्विस्ट के अनुसार, ''हमने पूरे प्रांत में 80 से ज़्यादा जगहों पर आग लगने के सबूत इकट्ठा किए हैं।
इस बात से यही नतीजा निकलता है कि म्यांमार की सेना किसी भी तरह से रोहिंग्या लोगों को देश से बाहर करने के लिए अभियान चला रही है। सेना और हमलावर गिरोह मिलकर ये काम कर रहे हैं।''
हालांकि सेना ने इस बात से इनकार किया है और कहा है कि उसने रोहिंग्या चरमपंथियों के हमले की जवाबी कार्रवाई में सैन्य अभियान चलाया है।
म्यांमार से जान बचाकर हज़ारों की तादाद में रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश पहुंच रहे हैं। और इतनी बड़ी संख्या में शरणार्थियों के पहुंचने से बांग्लादेश भी मुश्किल में है।
इस बीच अमरीका और ब्रिटेन ने भी म्यांमार की सेना को हिंसा बंद करने की हिदायत दी है। अमरीकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने कहा है कि रोहिंग्या लोगों के ख़िलाफ़ हो रही हिंसा तत्काल बंद होनी चाहिए।
ब्रिटेन के दौरे पर गए टिलरसन ने कहा, ''हम मानते हैं कि आंग सान सू ची बेहद मुश्किल और जटिल हालात का सामना कर रही हैं। और मुझे लगता है कि ये बहुत महत्वपूर्ण है कि दुनिया के बाकी देश भी इस पर बोलें। ये हिंसा तुरंत बंद होनी चाहिए।''
उन्होंने कहा, ''बहुत सारे लोग इसे नस्लीय नरसंहार का नाम दे रहे हैं। हमें सू ची और उनके नेतृत्व का समर्थन करना चाहिए, लेकिन सत्ता में साझेदारी करने वाली सेना को साफ तौर पर संदेश देना होगा कि ये हिंसा अस्वीकार्य है।
ब्रिटेन के विदेश मंत्री बोरिस जॉन्सन ने कहा है कि म्यांमार की शीर्ष नेता आंग सान सू ची को अपने नैतिक प्रभाव का इस्तेमाल करना चाहिए।
उन्होंने कहा, ''लोकतंत्र के लिए उन्होंने जो संघर्ष किया है, उसकी मैं बहुत इज़्ज़त करता हूं और मैं समझता हूं कि दुनिया में बहुत सारे लोग ऐसा सोचते हैं, लेकिन मैं सोचता है कि अब ये ज़रूरी हो गया है कि उन्हें अपने प्रभाव का इस्तेमाल करना चाहिए और रखाइन प्रांत में लोगों की तकलीफ़ पर बोलना चाहिए।''
उन्होंने कहा, ''कोई नहीं चाहेगा कि बर्मा में सैन्य शासन लौटे, लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि वो साफ़ कहें कि ये नफ़रत है और लोगों को वापस आने की अनुमति मिलनी चाहिए।''
बौद्ध बहुल म्यांमार में कई सालों से रोहिंग्या और बौद्धों के बीच संघर्ष चल रहा है। दसियों हज़ार रोहिंग्या जान बचाकर बांग्लादेश भाग चुके हैं और अभी पलायन जारी है।
इनमें से कुछ शरणार्थी भारत भी पहुंचे हैं, जहां उनको वापस भेजने की मांग हो रही है और इस मामले में भारत की सुप्रीम कोर्ट में एक मामला भी चल रहा है।
दूसरी तरफ़, ढाका की अपील पर भारत सरकार ने बांग्लादेश पहुंचे शरणार्थियों के लिए मदद का हाथ बढ़ाते हुए राहत सामग्री भेजने का फैसला लिया है।
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