रोहिंग्या मुसलमानों पर झूठ बोल रही है आंग सान सू ची

 20 Sep 2017 ( परवेज़ अनवर, एमडी & सीईओ, आईबीटीएन ग्रुप )
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म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हिंसा के बाद से म्यांमार का रखाइन प्रांत पूरी दुनिया में सुर्खियों में बना हुआ है।

रोहिंग्या हिंसा पर पहली बार बोलते हुए म्यांमार की स्टेट कौंसिलर आंग सांग सू ची ने मंगलवार को कहा है कि वो रोहिंग्या मुसलमानों से बात करना चाहती हैं, ताकि जान सकें कि वे म्यांमार छोड़कर क्यों जा रहे हैं?

जबकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने सेना के क्रूर रवैये को पलायन की वजह बताया है।

अब सवाल उठता है कि क्या वास्तव में आंग सांग सू ची को रोहिंग्या मुसलमानों के पलायन की वजह मालूम नहीं है?

जब पूरी दुनिया को रोहिंग्या मुसलमानों के पलायन की असली वजह मालूम है। सेना रोहिंग्या मुसलमानों की पूरी नस्ल के सफाये का अभियान चला रही है तो ये कैसे हो सकता है कि सेना के साथ सत्ता को शेयर करने वाली सू ची को असली वजह मालूम नहीं हो?

निश्चित तौर पर सू ची सत्ता में बने रहने के लिए रोहिंग्या मुसलमानों पर झूठ बोल रही है। ऐसा करके सू ची सेना को बचा रही है। ताकि सत्ता में बनी रह सके।

म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय से जुड़ी यह कोई पहली हिंसा नहीं है।

रखाइन म्यांमार के उत्तर-पश्चिमी छोर पर बांग्लादेश की सीमा पर बसा एक प्रांत है, जो 36 हजार 762 वर्ग किलोमीटर में फैला है। सितवे इसकी राजधानी है।

म्यांमार सरकार की 2014 की जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक, रखाइन की कुल आबादी करीब 21 लाख है, जिसमें से 20 लाख बौद्ध हैं। यहां करीब 29 हजार मुसलमान रहते हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य की करीब 10 लाख की आबादी को जनगणना में शामिल नहीं किया गया था।

रिपोर्ट में इस 10 लाख की आबादी को मूल रूप से इस्लाम धर्म को मानने वाला बताया गया है।

म्यांमार की जनगणना में शामिल नहीं की गई आबादी को रोहिंग्या मुसलमान माना जाता है। इनके बारे में कहा जाता है कि वे मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं।

म्यांमार सरकार ने उन्हें नागरिकता देने से इनकार कर दिया है। हालांकि वे पीढ़ियों से म्यांमार में रह रहे हैं।

रखाइन प्रांत में 2012 से सांप्रदायिक हिंसा जारी है। इस हिंसा में बड़ी संख्या में लोगों की जानें गई हैं और लाखों लोग विस्थापित हुए हैं।

बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान आज भी जर्जर कैंपो में रह रहे हैं। रोहिंग्या मुसलमानों को व्यापक पैमाने पर भेदभाव और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है।

लाखों की संख्या में बिना दस्तावेज़ वाले रोहिंग्या बांग्लादेश में रह रहे हैं। इन्होंने दशकों पहले म्यांमार छोड़ दिया था।

25 अगस्त को रोहिंग्या चरमपंथियों ने म्यामांर के उत्तर रखाइन में पुलिस पोस्ट पर हमला कर 12 सुरक्षाकर्मियों को मार दिया था।

इस हमले के बाद सेना ने अपना क्रूर अभियान चलाया और तब से ही म्यांमार से रोहिंग्या मुसलमानों का पलायन जारी है।

आरोप है कि सेना ने रोहिंग्या मुसलमानों को वहां से खदेड़ने के मक़सद से उनके गांव जला दिए और नागरिकों पर हमले किए।

पिछले महीने शुरू हुई हिंसा के बाद से अब तक करीब 3,79,000 रोहिंग्या शरणार्थी सीमा पार करके बांग्लादेश में शरण ले चुके हैं।

म्यांमार की नेता आंग सान सू ची ने रोहिंग्या मुसलमानों पर होने वाले अत्याचारों को चरमपंथ के ख़िलाफ़ कार्रवाई बताकर सेना का बचाव किया था। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की आलोचना के डर से सू ची ने संयुक्त राष्ट्र की महासभा में भी हिस्सा नहीं लिया।

एक सवाल जो सभी के सामने उठ रहा है, वह यह कि आंग सान सू ची अपने देश के अंदर कितनी ताकतवर हैं?

इस बीच आंग सांग सू ची पर लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने कहा है कि म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमान 'मानवीय आपदा' का सामना कर रहे हैं।

गुटेरेश ने कहा कि रोहिंग्या ग्रामीणों के घरों पर सुरक्षा बलों के कथित हमलों को किसी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने म्यांमार से सैन्य कार्रवाई रोकने की अपील की है।

म्यांमार की सेना ने आम लोगों को निशाना बनाने के आरोप से इनकार करते हुए कहा है कि वह चरमपंथियों से लड़ रही है।

संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी का कहना है कि बांग्लादेश में अस्थायी शिविरों में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों को मिल रही मदद नाकाफी है।

एंटोनियो गुटेरेश ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद की अपील की है।

उन्होंने कहा, ''पिछले हफ़्ते बांग्लादेश भागकर आने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों की संख्या एक लाख 25 हज़ार थी। अब यह संख्या तीन गुनी हो गई है।''

उन्होंने कहा, ''उनमें से बहुत सारे अस्थायी शिविरों में या मदद कर रहे लोगों के साथ रह रहे हैं, लेकिन महिलाएं और बच्चे भूखे और कुपोषित हालत में पहुंच रहे हैं।''

 

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