मलेशिया का पाम तेल कारोबार भारत से तनाव के कारण कुछ महीनों तक प्रभावित रहा था लेकिन अब कोरोना की महामारी ने पाम फसल की उपज में 25 फ़ीसदी की गिरावट ला दी है। आने वाले हफ़्तों में यह गिरावट और बढ़ेगी।
ऐसा श्रमिकों की कमी के कारण हो रहा है। मलेशियाई पाम तेल एसोसिएशन (MPOA) ने सोमवार को कहा कि सरकार के उस फ़ैसले का पाम तेल के उत्पादन पर गहरा असर पड़ा है जिसमें नए विदेशी श्रमिकों की बहाली को रोक दिया गया है।
सरकार ने दिसंबर महीने तक नए विदेशी श्रमिकों की बहाली कोरोना के कारण रोक दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार के इस फ़ैसले से मलेशिया की पाम तेल इंडस्ट्री चौपट हो सकती है।
MPOA के सीईओ नजीब वहाब ने एक कॉन्फ़्रेंस में कहा, ''कोविड 19 से पहले ही हमारे पास क़रीब 36 हज़ार श्रमिक कम थे। हमारा उत्पादन 10 फीसदी से 25 फीसदी गिर गया है।''
मलेशिया दुनिया का दूसरा बड़ा पाम तेल उत्पादक देश है। लेकिन मलेशिया की यह इंडस्ट्री इंडोनेशिया और बांग्लादेश के श्रमिकों पर निर्भर है। मलेशिया पाम फसल के प्लांटेशन 84 फ़ीसदी श्रमिक बांग्लादेश और इंडोनेशिया के हैं। हज़ारों श्रमिक वापस चले गए हैं और उनकी जगह पर नई भर्तियां बंद कर दी गई हैं।
श्रमिकों की कमी के कारण पाम के फल निकालने में देरी हो सकती है और इसका असर तेल उत्पादन पर सीधा पड़ेगा। सितंबर महीने में पाम तेल का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है और पूरी इंडस्ट्री श्रमिकों की कमी से जूझ रही है।
नजीब ने कहा कि प्लांटेशन कंपनी सक्रिय रूप से स्थानीय लोगों की नियुक्ति कर रहे हैं ताकि सरकार की नीति का पालन किया जा सके लेकिन स्थानीय लोग गंदगी के कारण इस काम में लगना नहीं चाहते हैं।
ऐसे में श्रमिकों की कमी को पाटना आसान नहीं है। नजीब ने कहा कि अगर स्थानीय लोगों से ज़रूरतें पूरी नहीं हो पाती है तो फिर सरकार की मदद चाहिए।
डिप्टी प्लांटेशन इंडस्ट्रीज और उत्पाद मंत्री विली मोंगिन ने कहा है कि मंत्रालय समस्या को निपटाने के लिए काम कर रहा है।
उन्होंने कहा कि मलेशिया विश्व व्यापार संगठन में शिकायत करने की तैयारी कर रहा है क्योंकि यूरोपीय यूनियन ने पाम तेल का इस्तेमाल बायोफ़्यूल के रूप में करने पर पाबंदी लगा दी है।
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